डोनाल्ड ट्रंप को यूक्रेन नहीं, बस अपनी फिक्र! इन 5 मोर्चों पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने दिखाया डबलगेम

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि भारत न सिर्फ रूस से तेल खरीद रहा है बल्कि इसे खुले बाजार में बेचकर बड़ा फायदा भी कमा रहा है. आखिर ट्रंप का खुद का देश रूस से व्यापार क्यों कर रहा है?

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अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप
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  • डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी, जिससे भारत ने सख्त प्रतिक्रिया दी.
  • भारत ने कहा कि रूस से तेल आयात करना वैश्विक बाजार की जरूरत है, अमेरिका और यूरोप भी रूस से व्यापार जारी रखे हैं
  • ट्रंप चीन के रूस से तेल आयात पर दबाव नहीं डाल रहे हैं, जबकि चीन भारत से ज्यादा रूसी तेल खरीद रहा है.
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डोनाल्ड ट्रंप- दुनिया के सबसे ताकतवर माने जाने वाले देश के राष्ट्रपति या उससे भी पहले एक व्यापारी जो नैतिकता के हर पैमाने को तोड़कर बस फायदे की सोच रखता है? अमेरिकी राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के 24 घंटे के अंदर रूस-यूक्रेन जंग खत्म कराने का चुनावी वादा करने वाले ट्रंप के पास 198 दिन बाद भी दुनिया को दिखाने के लिए कोई शांति समझौता नहीं है और अपनी इसी असफलता को ठीकरा वो भारत पर मढ़ते दिख रहे हैं. ट्रंप ने भारत को लेकर फिर से ट्रैफिक राग अलापा है. डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने को लेकर धमकी दी है कि इस कारण भारत पर टैरिफ (शुल्क) को काफी हद तक बढ़ा दिया जाएगा.

भारत कहीं से भी चुप बैठने वाला नहीं था. आलोचना को दृढ़तापूर्वक खारिज करते हुए भारत ने ट्रंप को उनकी हिपोक्रेसी दिखाई, उनके दोहरे स्टैंड को प्वाइंट आउट किया. चलिए आपको भारत के इस जवाब समेत उन 5 मुद्दों से आपको वाकिफ कराते हैं जहां डोनाल्ड ट्रंप का पाखंड दिखता है, उनका दोहरा स्टैंड दिखता है.


1. ट्रंप का पहला पाखंड तो भारत के विदेश मंत्रालय ने ही एक्सपोज कर दिया. ट्रंप दावा कर रहे हैं कि भारत रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीदकर यूक्रेन के खिलाफ उसकी जंग की फंडिंग कर रहा है. भारत का कहना है कि अगर ऐसा है तो अमेरिका और यूरोपीय संघ फिर रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को जारी क्यों रखे हुए हैं. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि वास्तव में, भारत ने रूस से आयात करना इसलिए शुरू किया क्योंकि संघर्ष शुरू होने के बाद पारंपरिक आपूर्ति यूरोप की ओर मोड़ दी गई थी. विदेश मंत्रालय ने कहा कि “ ये (आयात) एक आवश्यकता है, जो वैश्विक बाजार की स्थिति के कारण मजबूरी बन गई है. हालांकि यह बात उजागर हो रही है कि भारत की आलोचना करने वाले देश स्वयं रूस के साथ व्यापार में शामिल हैं.”

भारत का कहना है कि रूस  से तेल का व्यापार करना हमारी मजबूरी है लेकिन अमेरिका और यूरोपीय संघ बिना कोई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय बाध्यता के रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं. विदेश मंत्रालय ने कहा कि यूरोप-रूस व्यापार में न केवल ऊर्जा, बल्कि उर्वरक, खनन उत्पाद, रसायन, लोहा और इस्पात तथा मशीनरी और परिवहन उपकरण भी शामिल हैं. जहां तक अमेरिका का सवाल है, वह अपने परमाणु उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, अपने ईवी उद्योग के लिए पैलेडियम, उर्वरक और रसायनों का आयात जारी रखे हुए है. वाह ट्रंप, आप मजे में खाओ तो आम, हम जरूरत की वजह से खाएं तो इमली?

2. अब वापस आते हैं कि ट्रंप को यूक्रेन की कितनी फिक्र है. जब ट्रंप 20 जनवरी को दोबारा राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठें तो जंग रोकने के लिए यूक्रेन के पास नहीं, रूस के पास गए. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की को सबके सामने तानाशाह बोला, उनकी निंदा की, फिर समझौता किया. उन्हें वाशिंगटन का न्योता भेजा, फिर ओवल ऑफिस में सबके सामने उनसे बहस की, लगभग उन्हें डांट दिया. फिर संबंधों को फिर से सुधारने के लिए खुला दिल दिखाया. फिर यूक्रेन के साथ हथियार और खुफिया जानकारी शेयर करना बंद कर दी. जब बार-बार पुतिन ने झटका देते हुए सीजफायर समझौते पर राजी होने से इनकार कर दिया तो वापस यूक्रेन को अपने पाले में लेते आएं. अब वापस पुतिन आपके लिए तानाशाह हो गए, आपने यूक्रेन की सैन्य मदद शुरू कर दी. ट्रंप आपने तो रूस-यूक्रेन जंग में अपनी विदेश/ सामरिक नीति ऐसी नहीं रखी जिसमें दोहरा पैमाना नहीं दिखता हो.

3. क्या ट्रंप को चीन और रूस का व्यापार नहीं दिख रहा? विदेश मामलों के विशेषज्ञ रोबिंदर सचदेव ने सवाल किया है कि ट्रंप भारत की तरह चीन पर "उसी तीव्रता" से "दबाव" क्यों नहीं डाल रहे हैं क्योंकि चीन भी उसी हद तक रूसी तेल खरीद रहा है. ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा है कि "भारत नहीं चीन रूसी तेल का सबसे बड़ा खरीदार है. 2024 में, चीन ने 62.6 बिलियन डॉलर का रूसी तेल आयात किया, जबकि भारत ने 52.7 बिलियन डॉलर का आयात किया था. लेकिन मिस्टर ट्रंप चीन की आलोचना करने के लिए तैयार नहीं हैं, शायद भूराजनीतिक समीकरण के कारण, और इसके बजाय भारत को गलत तरीके से निशाना बना रहे हैं." 

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4. ट्रंप को यूक्रेन की भयावह जंग में रूस को कैसे रोकना है, वो दिख रहा है, और यकीनन जंग हर हाल में रुकनी भी चाहिए, लेकिन गाजा का क्या. भूख से हर दिन मरते उन बच्चों का क्या, कंकाल में तब्दील होती उस आबादी का क्या? क्या आप नेतन्याहू को यह अकाल ला देने वाली जंग रोकने के लिए दबाव बनाएंगे, क्या अमेरिका इजरायल के साथ व्यापार बंद करेगा? जंग तो जंग होती है न, चाहे खून यूरोपीय देश में बहे या फिर मिडिल ईस्ट देश में.

5. ट्रंप को नोबेल पुरस्कार की जो सनक चढ़ी है वो अपने आप में विलक्षण हैं. वो पुलवामा जैसे भयावह आतंकी हमले को अंजाम देने वाले पाकिस्तान के कट्टर आर्मी चीफ के साथ लंच करते हैं, पाकिस्तान के साथ व्यापार समझौता करके उसके तेल का भंडार तैयार करने की बात करते हैं, उससे नोबेल पुरस्कार का नॉमिनेशन लेते हैं. ट्रंप एक वाक्य में शांति और पाकिस्तान का नाम कैसे ले ले रहे हैं. शायद ट्रंप की यादाश्त कमजोर हो रही है, वो भूल गए हैं कि ओसाम लादेन को शरण किसने दी थी, बार बार उसके जमीन पर हमला करने वाले आतंकी संगठनों को किसने जगह दी है. खैर अपने फायदे के लिए हिंसा और आतंकवाद से समझौता करना ट्रंप का आता है. ट्रंप ने हाल ही में मिडिल ईस्ट के दौरे पर सीरिया के अंतरिम राष्ट्रपति अहमद अल-शरा से मुलाकात की थी. कमाल है कि हाल तक अहमद अल-शरा को उसके निकनेम अबू मोहम्मद अल-जुलानी (जिसे अल-गोलानी या अल-जुलानी भी कहा जाता है) के नाम से जाना जाता था. वह एक संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित और अमेरिका द्वारा नामित आतंकवादी था. ट्रंप को उसके खून लगे हाथ को मिलाने को कोई गुरेज नहीं है लेकिन अगर भारत अपनी आर्थिक हितों की वजह से रूस से तेल खरीद रहा है तो ट्रंप को परेशानी है.

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