- डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि उन्होंने छह या सात युद्ध खत्म कर दिए, लेकिन यह दावे पूरी तरह सही नहीं है
- उन्होंने देशों के बीच संघर्षों का ज़िक्र किया, जिनमें भारत-पाकिस्तान और आर्मेनिया-आज़रबाइजान शामिल हैं
- विशेषज्ञों के अनुसार ट्रंप के मध्यस्थता प्रयासों से केवल बातचीत शुरू हुई, स्थायी समाधान नहीं मिला है
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप फिर अपने बयानों को लेकर चर्चा में हैं. हाल ही में एक इंटरव्यू और प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने दावा किया कि उन्होंने “छह या सात युद्ध खत्म कर दिए.” लेकिन जब इस दावे की पड़ताल हुई, तो हकीकत उतनी साफ नहीं निकली, जितना ट्रंप ने बताया. ट्रंप का कहना है कि उन्होंने कई देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद सुलझाए।
व्हाइट हाउस ने उनके दावे का समर्थन करते हुए आर्मेनिया-आज़रबाइजान, कांगो-रवांडा, भारत-पाकिस्तान, कम्बोडिया-थाईलैंड, मिस्र-इथियोपिया, सर्बिया-कोसोवो और इज़राइल-ईरान जैसे संघर्षों का ज़िक्र किया. ट्रंप का दावा है कि उनकी कोशिशों से इन तनावों पर ब्रेक लगा और दुनिया को राहत मिली. लेकिन क्या वाकई ऐसा हुआ?
क्या है सच्चाई?
AP जैसी न्यूज़ एजेंसियों की रिपोर्ट्स बताती हैं कि मामला इतना साधारण नहीं है. उदाहरण के लिए भारत-पाकिस्तान का का ही उदाहरण लीजिए. कश्मीर और सीमा विवाद पर तनाव बरकरार है. ट्रंप ने मध्यस्थता की बात कही थी, लेकिन भारत ने साफ कर दिया था कि इसमें किसी तीसरे पक्ष की ज़रूरत नहीं है. ऐसे में “युद्ध खत्म” करने का दावा हकीकत से मेल नहीं खाता. आर्मेनिया-आज़रबाइजान के नागोर्नो-काराबाख विवाद में ट्रंप ने शुरुआती समझौता करवाया, लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि यह स्थायी हल नहीं है. बल्कि सिर्फ पहला कदम था.
दावों में कितनी है सच्चाई?
कांगो-रवांडा के तनाव पर कुछ बातचीत हुई, लेकिन संघर्ष की जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे “खत्म” कहना जल्दबाज़ी है. मिस्र-इथियोपिया के बीच भी कोई युद्ध नहीं था, बल्कि जल संसाधनों और डैम परियोजना को लेकर विवाद चल रहा था. सर्बिया-कोसोवो का मसला भी बरकरार है. कुछ बातचीत हुई, लेकिन ज़मीन पर कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखा.
क्या छोटे-छोटे संघर्ष को भी युद्ध मान रहे हैं ट्रंप?
कम्बोडिया-थाईलैंड सीमा विवाद में तनाव कम हुआ, लेकिन इसे “युद्ध खत्म” कहना सही नहीं है. फैक्ट-चेकर्स कहते हैं कि ट्रंप ने जिन्हें “युद्ध” बताया, उनमें से कई वास्तव में युद्ध थे ही नहीं, बल्कि पुराने तनाव या राजनीतिक मतभेद थे. कुछ मामलों में उनकी मध्यस्थता से बातचीत शुरू हुई, लेकिन इसे स्थायी हल कहना गलत है. आलोचकों का मानना है कि ट्रंप छोटे कदमों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर “शांतिदूत” की छवि बना रहे हैं.
ट्रंप की नजर नोबेल शांति पुरस्कार पर
ट्रंप के नोबेल शांति पुरस्कार की बात करने पर भी विवाद बढ़ गया है. उनका कहना है कि इतने बड़े पैमाने पर युद्ध खत्म करने वाले को यह पुरस्कार मिलना चाहिए. लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि अधूरे समझौतों को इस तरह पेश करना पुरस्कार की साख को नुकसान पहुंचा सकता है. हकीकत यह है कि ट्रंप का दावा जितना बड़ा और आकर्षक लगता है, उतना ही जटिल और अस्पष्ट है. कुछ मामलों में उन्होंने बातचीत का रास्ता खोला, लेकिन “युद्ध खत्म” करने जैसी बड़ी उपलब्धि का दावा करना गलत है.
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