अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को विश्वविद्यालयों में प्रवेश के दौरान नस्ल और जातीयता को आधार मानने पर प्रतिबंध लगा दिया है. इस फैसले पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने पूर्ण रूप से असहमति जताई है. वहीं, अमेरिकी की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने भी इसे उचित नहीं ठहराया है. उन्होंने कहा कि ये अवसर से इनकार करने जैसा है. वहीं, रिपब्लिकन यूएस हाउस स्पीकर केविन मैक्कार्थी ने कहा कि कोर्ट का ये ऐतिहासिक फैसला कॉलेज प्रवेश प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाएगा और कानून के तहत समानता को कायम रखेगा.
अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने कहा, "हमारे देश की सर्वोच्च अदालत ने आज 'एफ़रमेटिव एक्शन' पर फैसला सुनाया और मैं इसके बारे में बोलने के लिए मजबूर महसूस कर रही हूं. यह कई मायनों में अवसर से इनकार है." उन्होंने आगे कहा, "यह कहना गलत नहीं होगा कि ये निर्णय रंगभेद की अनदेखी है. यह इतिहास के प्रति आंखे मूंद लेना है, असमानताओं के बारे में अनुभवजन्य साक्ष्यों के प्रति अनदेखी करना है, और उस ताकत के प्रति अनदेखी है, जो विभिन्न कक्षाओं, बोर्डरूम में होती है."
अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यूनिवर्सिटी एडमिशन में नस्ल और जातीयता के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया. इससे दशकों से एफर्मेटिव एक्शन कही जाने वाली पुरानी प्रथा को बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने एक एक्टिविस्ट ग्रुप स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशंस का पक्ष लिया. इस ग्रुप ने देश में उच्च शिक्षा के सबसे पुराने निजी और सार्वजनिक संस्थानों, खास तौर पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और उत्तरी कैरोलिना यूनिवर्सिटी (UNC) पर उनकी एडमिशन की नीतियों को लेकर मुकदमा दायर किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कि छात्रों को उनके अनुभव और काबिलियत के आधार पर मौके मिलने चाहिए ना कि नस्ल के आधार पर. आवेदक श्वेत है या अश्वेत या किस नस्ल का है, इस आधार पर एडमिशन देना अपने आप में भेदभावपूर्ण और नस्लीय है. ऐसा नहीं होगा चाहिए.
ये भी पढ़ें :-