China Moon Mission: चीन का अंतरिक्ष यान चांग'ई-6 (CHANG'E-6) मंगलवार को चंद्रमा (Moon) के उस सुदूर भाग से सैंपल लेकर वापस लौट आया, जिस भाग को पृथ्वी से कभी नहीं देखा जा सकता है. इस तरह का मिशन पूरा करने वाला यह पहला अंतरिक्ष यान है.
लैंडर एक जून को चंद्रमा की सतह पर उतरा था. उसने रोबोटिक आर्म और ड्रिल का उपयोग करके सबसे पुराने और सबसे बड़े मून क्रेटरों में से ढाई हजार किलोमीटर चौड़े साउथ पोल-ऐटकेन (SPA) बेसिन से पत्थर और मिट्टी के नमूने एकत्रित किए. उसने वहां दो दिन बिताए.
नमूने एकत्रित होने के बाद लैंडर ने एक एसेंट मॉड्यूल लॉन्च किया. इसने नमूने चंद्रमा की परिक्रमा कर रहे चांग'ई-6 ऑर्बिटर में ट्रांसफर कर दिए. ऑर्बिटर ने 21 जून को एक सर्विस मॉड्यूल जारी किया जो नमूनों को पृथ्वी पर वापस ले आया.
अपोलो 11 मिशन में लाए गए थे पत्थर और मिट्टी
ऐसा नहीं है कि इससे पहले कोई अंतरिक्ष यान चांद के नमूने पृथ्वी पर नहीं लाया. जुलाई 1969 में अमेरिका के अपोलो 11 मिशन में चांद की सतह से 50 चट्टानों सहित 22 किलोग्राम सामग्री पृथ्वी पर लाई गई थी. सितंबर 1970 में रूस के सोवियत लूना 16 मिशन, जो कि पहला रोबोटिक मिशन था, में भी चांद से पृथ्वी पर नमूने लाए गए थे.
हाल के वर्षों में चांग'ई-6 के पहले दिसंबर 2020 में चांग'ई-5 मिशन में चांद से दो किलोग्राम मिट्टी लाई गई थी, हालांकि यह नमूने चांद के पृथ्वी के समीप वाले हिस्से से लाए गए थे. चांद का वह हिस्सा जो कभी भी पृथ्वी के सामने नहीं आता है, काफी दुर्गम है. उस हिस्से में विशाल गड्ढे हैं और वहां से ग्राउंड कंट्रोल के साथ कम्युनिकेशन में कठिनाई होने के कारण वहां अंतरिक्ष यान को उतारना तकनीकी रूप से काफी चुनौतीपूर्ण है. हम चंद्रमा का केवल एक ही हिस्सा देख सकते हैं.
चीन ने हासिल की बड़ी उपलब्धि
चांग'ई-4 ने 2019 में इन कठिनाइयों पर पार पाकर युतु-2 रोवर को चांद की सुदूर सतह पर उतारा. अब चांग'ई-6 न केवल सुदूर क्षेत्र में उतरा है, बल्कि वहां से नमूने लेकर वापस भी लौट आया है. यह चीन की एक बड़ी उपलब्धि है.
भारत का चंद्रयान-4 मिशन, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) जिसकी तैयारी में जुटा है, भी एक सैंपल रिटर्न मिशन होगा. चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से लगभग 600 किलोमीटर दूर उतरा था.
चंद्रमा के दोनों हिस्से आपस में इतने अलग क्यों?
चंद्रमा का दूर वाला हिस्सा भूगर्भीय रूप से पास वाले हिस्से से अलग है. इसमें मोटी परत है, अधिक क्रेटर और कम मैदान हैं. वहां कभी लावा बहता रहा था. वैज्ञानिकों को अब तक यह पता नहीं चल सका है कि चांद के यह दोनों हिस्से आपस में इतने अलग-अलग क्यों हैं. चांग'ई-6 में लाए गए सैंपलों की जांच से इसका कुछ जवाब मिलने की संभावना है.
एसपीए बेसिन से एकत्रित किए गए सैंपल चंद्र क्रेटरिंग की समय-सीमा का भी पता लगा सकते हैं. नमूनों की जांच से चंद्रमा के इतिहास और संभवतः इसकी उत्पत्ति के बारे में जानकारी मिल सकती है.
चंद्रमा के ध्रुवों पर बर्फ मौजूद होने की संभावना
लाए गए नमूने भविष्य के चंद्र और अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए चंद्र संसाधनों का उपयोग करने के तरीके भी सुझा सकते हैं. चंद्रमा के ध्रुवों पर बर्फ मौजूद होने की संभावना है. वैज्ञानिकों की इसमें भी रुचि है. बर्फ से पानी, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन प्राप्त किया जा सकता है. ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का उपयोग रॉकेट प्रोपेलेंट में किया जा सकता है.
साल 2023 में भारत, चीन, जापान, अमेरिका और रूस ने चंद्र मिशन शुरू किए हैं. यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के अनुसार, वर्ष 2030 तक सरकारों और निजी कंपनियों द्वारा 100 से अधिक चंद्र मिशन शुरू किए जाने की उम्मीद है.
चांद के लिए अंतरिक्ष यात्रियों की राह
चीन और अमेरिका जैसे देश सन 2030 तक अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा पर भेजना चाहते हैं. चांग'ई-6 की सफलता को चीन द्वारा इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में एक अहम कदम के रूप में देखा जा रहा है.
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