इस्लामाबाद में सत्ता परिवर्तन से भारत-पाक रिश्तों की टूटी कड़ियों को जोड़ने का मिल सकता है मौका

पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ के छोटे भाई शहबाज शरीफ की गत वर्षों में ऐसे व्यक्ति की छवि बनी है जो कठिन कार्यों में परिश्रम के लिहाज से कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ता.

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पीएमएल-एन के सांसद और शहबाज के करीबी सहयोगी समीउल्लाह खान ने कहा कि उनके नेता भारत के साथ संबंध के लिए नयी नीति बनाएंगे.
इस्लामाबाद/लाहौर:

विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में प्रधानमंत्री इमरान खान की विदाई के बाद वहां बनने वाली नयी सरकार का नेतृत्व शहबाज शरीफ के हाथों में संभवत: आने से भारतीय और पाकिस्तानी नेताओं को द्विपक्षीय संबंधों पर जमी बर्फ को पिघलाने की पहल करने की राह नजर आ सकती है. पाकिस्तान के तीन बार प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ के छोटे भाई शहबाज शरीफ की गत वर्षों में ऐसे व्यक्ति की छवि बनी है जो कठिन कार्यों में परिश्रम के लिहाज से कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ता.

जियो टीवी के एक प्रस्तोता ने कुछ दिन पहले जब उनसे पूछा था कि उनके नेतृत्व में अमेरिका से संबंध किस तरह के होंगे तो शहबाज ने जवाब दिया था, ‘‘भिखारी कभी चुनाव करने वाला नहीं हो सकता.''

उनकी इस टिप्पणी की तुलना तत्काल उनके प्रतिद्वंद्वी खान की ‘‘विदेश नीति में सम्मान के भाव'' वाली टिप्पणी से की जाने लगी.

यह पूछे जाने पर कि क्या शहबाज के प्रधानमंत्री पद पर होने से भारत-पाकिस्तान संबंधों की पहेली को सुलझाने में मदद मिल सकती है, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) के सांसद और शहबाज के करीबी सहयोगी समीउल्लाह खान ने पीटीआई-भाषा से कहा कि उनके नेता भारत के साथ संबंध के लिए नयी नीति बनाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘‘शहबाज के नेतृत्व में पाकिस्तान, भारत के लिए नयी नीति के साथ आएगा. मूल बात है कि इमरान खान शासन के पास भारत को लेकर कोई नीति नहीं थी या कमजोर थी, जिसने भारत को कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने की अनुमति दी और खान केवल असहाय होकर देखते रह गए.''

प्रमुख राजनीतिक विश्लेषक डॉ. हसन अस्करी ने कहा कि सबसे पहले भारत और पाकिस्तान को संवाद शुरू करना चाहिए जिसे भारत ने वर्ष 2014 से ही स्थगित कर रखा है क्योंकि जब तक वे बातचीत शुरू नहीं करते तब तक आगे नहीं बढ़ा जा सकता.

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उन्होंने कहा, ‘‘चूंकि भारत ने वार्ता स्थगित की है, इसलिए इसे बहाल करने की जिम्मेदारी भारत पर है. पाकिस्तान की किसी सरकार ने सार्थक संवाद का विरोध नहीं किया है.''

उन्होंने कहा कि जब इमरान खान वर्ष 2018 में सत्ता में आए तो भारत के साथ संबंधों को दोबारा बहाल करने का वादा किया लेकिन जल्द ही दोनों देशों के रिश्तों में पुलवामा आतंकवादी हमले की पृष्ठभूमि में खटास आ गई. उन्होंने कहा कि हालांकि, तूफान तो गुजर गया लेकिन उसके पीछे संबंधों में आई दरार को जल्द भरे जाने की गुंजाइश नहीं रही.

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कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने से दोनों पक्षों में और दूरी आ गई. संयुक्त विपक्ष द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने तक दोनों देशों की ओर से रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने की मामूली कोशिश के बीच समय बीतता रहा.

विशेषज्ञों का मनना है कि पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को नए सिरे से शुरू करने का अवसर हो सकता है क्योंकि शहबाज कह रहे हैं कि इमरान खान ने पाकिस्तान की विदेश नीति को नष्ट कर दिया है.

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दोनों देशों के संबंधों के सुधरने की अहम वजह नए प्रधानमंत्री को नवाज शरीफ सरकार की निरंतरता के तौर पर देखा जाना है जो अब भी पीएमएल-एन के सभी राजनीतिक फैसले लेते हैं और उनके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से संबंध कोई छिपी हुई बात नहीं हैं.

हालांकि, शहबाज के लिए संभावित चुनौतियां भी हैं और सबसे पहली चुनौती यह है कि वह दूसरा ‘‘मोदी का यार'' कहे जाने को लेकर चिंतित होंगे. शहबाज कुछ समय के लिए ही सत्ता में रह सकते हैं क्योंकि कई विपक्षी दलों ने संकेत दिया है कि जरूरी सुधार, खास तौर पर चुनाव से जुड़े सुधार किए जाने के बाद नए सिरे से चुनाव कराए जाएंगे.

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ऐसे में भारत को लेकर किसी भी तरह की रियायत ऐसे समय में खान को सियासी हमला करने का मौका देगी. पीएमएल-एन की प्रवक्ता उज्मा बुखारी ने कहा कि शहबाज सत्ता में आने के बाद भारत पर कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करने के लिए दबाव बनाएंगे.

उन्होंने कहा कि खान के उलट भारत शहबाज नीत पाकिस्तान के गंभीर नेतृत्व से बात करेगा और हमारी चिंताओं को सुनेगा. इमरान खान की सरकार अंतरराष्ट्रीय समुदाय के जरिये कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल करने के लिए भारत सरकार पर दबाव बनाने में असफल रही.

उन्होंने कहा कि इमरान बहुत भ्रमित थे और भारतीय विदेश नीति को ‘‘ स्वतंत्र'' बताकर प्रशंसा कर रहे थे तथा परोक्ष रूप से पाकिस्तान की नीति की आलोचना कर रहे थे. इस्लामाबाद के नए नेतृत्व के लिए सीमित स्थान ही उपलब्ध है. उन्होंने कहा कि भारत को पहल करना चाहिए और पाकिस्तान से वार्ता का संकेत देना चाहिए.

उन्होंने कहा, ‘‘अब तक कोई संकेत नहीं है कि सरकार के बदलाव का दोनों देशों पर कोई असर पड़ेगा. पहले भारत की ओर से संकेत आना चाहिए जो मैं नहीं देख रहा हूं.''

अस्करी ने लेकिन आने वाले वर्षों में सुधार की संभावना से इनकार नहीं किया है. उन्होंने कहा, ‘‘दीर्घकालिक संदर्भ में दोनों पक्ष संपर्क कर वार्ता को बहाल कर सकते हैं.''

उन्होंने कहा कि वास्तविक बदलाव नए सिरे से चुनाव के बाद आएगा और चुनाव इस साल के अंत में होने की उम्मीद है.

हालांकि, बुखारी भारत के साथ संबंधों को लेकर ऐतहासिक कारणों से बहुत आशावान हैं. उन्होंने कहा, ‘‘यह हमारे सर्वोच्च नेता नवाज शरीफ थे जिनके निमंत्रण पर भारतीय प्रधानमंत्री (अटल बिहारी) वाजपेयी लाहौर आए और दो घोर प्रतिद्वंद्वियों के बीच शांति की पहल की गई.''

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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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