आखिर क्यों देना पड़ा PM पद से इस्तीफा, जानिए अपने ही जाल में कैसे फंसे जस्टिन ट्रूडो

हाल के समय में कनाडा की गिरती इकोनॉमी, अमेरिका के प्रेसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकियों, बढ़ती महंगाई और हाउसिंग क्राइसिस को लेकर जस्टिन ट्रूडो को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था. भारत विरोधी कैंपेन को लेकर भी ट्रूडो की रेटिंग गिरती जा रही थी.

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जस्टिन ट्रूडो 2013 में लिबरल पार्टी के चीफ बने थे. उन्होंने 2015 में पहली बार में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली.

नई दिल्ली/टोरंटो:

जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) ने अपनी पार्टी के नेताओं के बढ़ते दबाव के बाद आखिरकार सोमवार को बड़ा फैसला ले लिया. उन्होंने कनाडा के PM पद से इस्तीफा दे दिया है. भारत विरोधी बयानों और अघोषित एंटी इंडिया कैंपेन को लेकर ट्रूडो अपने घर और अपनी पार्टी में ही घिरते जा रहे थे. कनाडा की सत्ताधारी लिबरल पार्टी (Liberal Party) के कई नेता सार्वजनिक तौर पर खुलकर उनके खिलाफ बयान दे रहे थे. उनकी नीतियों को लेकर आवाज उठाई जा रही थी. ट्रूडो पर आरोप है कि वो खालिस्तान मुद्दे को लेकर भारत के खिलाफ आरोप लगाकर अपनी सरकार की नाकामी छिपाने की कोशिश कर रहे हैं. 

हाल के समय में कनाडा की गिरती इकोनॉमी, अमेरिका के प्रेसिडेंट इलेक्ट डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ धमकियों, बढ़ती महंगाई और हाउसिंग क्राइसिस को लेकर जस्टिन ट्रूडो को आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था. वहीं, भारत विरोधी कैंपेन को लेकर भी ट्रूडो की रेटिंग गिरती जा रही थी. आइए जानते हैं भारत के खिलाफ बुने गए अपने ही जाल में कैसे फंस गए जस्टिन ट्रूडो, जिससे उन्हें PM की कुर्सी गंवानी पड़ी:-

देश के नाम संबोधन में ट्रूडो ने क्या कहा?
-जस्टिन ट्रूडो ने कहा, "कनाडा अगले इलेक्शन के लिए एक बेहतर ऑप्शन का हकदार है. मैं वो ऑप्शन नहीं हूं. अगर मुझे अपने घर में ही लड़ाई लड़नी पड़े, तो मैं समझता हूं कि 2025 के इलेक्शन के लिए मैं अच्छा ऑप्शन बिल्कुल नहीं हूं. लेकिन फाइटर हूं और मेरी लड़ाई जारी रहेगी."

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-ट्रूडो ने कहा, "मैं नए लीडर का चयन होने तक कार्यवाहक PM बना रहूंगा. मुझे पूरी उम्मीद है कि नया प्रधानमंत्री और लिबरल पार्टी का नया लीडर इस इलेक्शन में अपने मूल्यों और आदर्शों को लेकर आगे जाएगा. कनाडा को आगे लेकर जाएगा."

- उन्होंने कहा, "सच तो ये है कि मेरी तमाम कोशिशों के बाद भी कनाडा की संसद पैरालाइज बनी हुई है. लेकिन, मैं एक फाइटर हूं. मुझे मेरे देश कनाडा की फिक्र है और रहेगी. मैं अपने देश की बेहतरी के लिए लड़ता रहा हूं. ये लड़ाई आगे भी जारी रहेगी." 

-जस्टिन ट्रूडो ने कहा, "लिबरल पार्टी के भीतर आंतरिक लड़ाइयां थीं, जिसके कारण मुझे पार्टी प्रमुख और कनाडाई PM के रूप में पद छोड़ने का फैसला लेना पड़ा." 53 वर्षीय ट्रूडो ने कहा, "मैंने मेरी पूर्व पत्नी और बच्चों के साथ लंबी चर्चा के बाद PM पद छोड़ने का फैसला लिया है."  ट्रूडो सरकार का कार्यकाल अक्टूबर तक था. ऐसे में माना जा रहा है कि कनाडा में जल्द चुनाव कराए जा सकते हैं.
 

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लिबरल पार्टी में विद्रोह की आवाज
बीते कुछ सालों में जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी में विद्रोह की आवाज तेज हुई है. सियान कैसी और केन मैक्डोनाल्ड समेत पार्टी के कई हाई प्रोफाइल सांसद सार्वजनिक तौर पर जस्टिन ट्रूडो के खिलाफ अपनी राय दे चुके हैं. इन सांसदों ने अपने प्रधानमंत्री के बयानों और फैसलों को गलत बताया है. उनकी लीडरशिप पर सवाल उठा चुके हैं. पार्टी की ओर से ट्रूडो पर PM पद छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा है. कुछ अंतरराष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक, लिबरल पार्टी के कम से कम 20 सांसदों ने जस्टिन ट्रूडो के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे को लेकर एक पिटीशन पर साइन किए हैं.

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डिप्टी PM क्रिस्टिया फ्रीलैंड के इस्तीफे से बढ़ा दबाव
ट्रूडो सरकार में राजनीतिक संकट का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिसंबर 2024 में डिप्टी PM और वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने ट्रूडो सरकार के इकोनॉमिक पॉलिसी को लेकर सवाल खड़े किए थे. क्रिस्टिया का कहना था कि ट्रूडो ने उनसे वित्तमंत्री का पद छोड़ दूसरे मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने के लिए कहा था.

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फ्रीलैंड ने अपने इस्तीफे में ट्रूडो और उनकी 'महंगी राजनीतिक तौर-तरीकों' की कड़ी आलोचना की थी. फ्रीलैंड के इस्तीफे के बाद से ट्रूडो, मीडिया ब्रीफिंग या फिर ऐसे किसी पब्लिक इवेंट से गायब हैं. ऐसा माना जा रहा है कि सवालों से बचने के लिए ट्रूडो ने ये कदम उठाया है. वो ज्यादातर समय अपने रिसॉर्ट में बिता रहे हैं.

भारत के खिलाफ कैंपेनिंग कैसे पड़ गया भारी?
ट्रूडो ने दुष्प्रचार किया था कि भारत आपराधिक गतिविधियों को स्पॉन्सर करता है. उनके इस दावे की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी आलोचना हुई है. आलोचकों का तर्क है कि ये आरोप कनाडा में खालिस्तानी सिख वोट आधार के एक वर्ग को आकर्षित करने का एक प्रयास है. इस कदम को कुछ लोग राजनीति से प्रेरित मानते हैं. हालांकि, ट्रूडो की यह रणनीति उलटी पड़ती दिख रही है. जानिए, किन बयानों और फैसलों से बढ़ीं मुश्किलें:-

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1. खालिस्तानी आतंकी निज्जर की हत्या के लगाए आरोप
भारत और कनाडा के बीच राजनीतिक तनाव की शुरुआत सितंबर 2023 में हुई. जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय संलिप्तता के आरोप लगाए. निज्जर को कनाडा में एक सिख मंदिर के बाहर गोली मार दी गई थी. भारत ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कनाडा से सबूत मांगे. लेकिन ट्रूडो सरकार ने बार-बार मांगने के बाद भी कोई सबूत नहीं दिए. इसके बाद से नई दिल्ली और ओटावा के बीच तनाव बढ़ता ही रहा. 

ट्रूडो ने दुष्प्रचार किया था कि भारत आपराधिक गतिविधियों को स्पॉन्सर करता है. उनके इस दावे की घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीखी आलोचना हुई है. 

2. खालिस्तान समर्थकों की गतिविधियों में वृद्धि
ट्रूडो सरकार में खालिस्तान समर्थकों को खूब बढ़ावा मिला. खालिस्तानियों ने भारतीय उच्चायोग और वाणिज्य दूतावास के बाहर हिंसक प्रदर्शन किए. भारतीय झंडे का अपमान किया गया. खालिस्तानी समर्थकों की रैलियों में खुलेआम भारत विरोधी नारे लगाए गए. भारत ने इन घटनाओं पर सख़्त रूख अपनाते हुए कनाडा से कार्रवाई की मांग की, लेकिन ट्रूडो सरकार ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा ठहराया और कोई एक्शन नहीं लिया.

3. G-20 समिट के दौरान विवाद
इसके बाद सितंबर 2023 में नई दिल्ली में G-20 समिट हुआ. इसके तहत जस्टिन ट्रूडो और PM मोदी की मुलाकात हुई. प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रूडो से मुलाकात में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों पर अपनी कड़ी नाराज़गी ज़ाहिर की. ट्रूडो ने भारत की चिंताओं को गंभीरता से लेने के बजाय इसे कनाडा का आंतरिक मामला बता दिया. इससे मामला और बढ़ा.

4. बिजनेस और वीज़ा सर्विस पर लगाया कैप
दिल्ली से कनाडा लौटते ही जस्टिन ट्रूडो ने भारत के खिलाफ कई फैसले लिए. इसमें बिजनेस और वीजा सर्विस पर कैप लगाना शामिल था. आपसी विवाद की वजह से मोदी सरकार ने भारत-कनाडा व्यापार समझौता (CEPA) की बातचीत को अनिश्चितकाल के लिए होल्ड कर दिया. भारत ने राजनयिकों की सुरक्षा का हवाला देते हुए कनाडाई नागरिकों के लिए वीजा सेवाओं को भी निलंबित या बेहद सीमित कर दिया.

5. भारतीय हाई कमिश्नर पर जासूसी का आरोप
इस बीच जस्टिन ट्रूडो ने एक और हैरान करने वाली चाल चली. उन्होंने कनाडा ने मौजूद भारत के हाई कमिश्नर संजय कुमार वर्मा और दूसरे सीनियर डेप्लोमेट्स पर जासूसी करने का आरोप लगाया. कनाडा ने निज्जर मामले में भारतीय अधिकारियों से पूछताछ करने की कोशिश की थी. इसपर कड़ा ऐतराज जताते हुए भारत ने 6 कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित कर दिया था. भारत ने ओटावा में अपने राजदूत संजय कुमार वर्मा को भी वापस बुला लिया था. 

6. गृह मंत्री अमित शाह का नाम तक घसीटा
भारत के खिलाफ उठाए गए ट्रूडो के कदम यहीं नहीं रुके. उन्होंने इन सब में गृह मंत्री अमित शाह का नाम तक घसीटा. ट्रूडो ने अमित शाह के ऊपर खालिस्तानी आतंकियों का कनाडा में सफाया करने का आदेश जारी करने का आरोप लगाया. भारत सरकार ने इन आरोपों को न सिर्फ सिरे से खारिज किया, बल्कि कनाडा के खिलाफ एक्शन भी लिया.

7. भारत विरोधी राजनीति ने किया साइडलाइन
भारत जैसे बड़े व्यापारिक और कूटनीतिक साझेदार से खराब संबंध कनाडा के लिए घाटे का सौदा साबित हुआ. ट्रूडो की भारत विरोधी राजनीति ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग कर दिया. ब्रिटेन-अमेरिका तक ने इसकी आलोचना की. इस तरह ट्रूडो ने अपनी राजनीतिक करियर के आगे फुलस्टॉप लगा दिया.

कनाडा में अब आगे क्या?
कनाडाई संसद का सत्र 27 जनवरी से शुरू होना था. लेकिन ट्रूडो ने अपने इस्तीफे के साथ ही इसपर फिलहाल के लिए फुल स्टॉप लगा दिया है. ट्रूडो ने कहा कि अब कनाडाई संसद का सेशन मार्च में होगा. लिबरल पार्टी पहले से अल्पमत में है. ऐसे में संसद का सेशन शुरू होते ही लिबरल पार्टी को विश्वास मत का सामना करना पड़ सकता है. मौजूदा राजनीतिक हालात को देखते हुए बहुत साफ है कि लिबरल पार्टी को बाकी पार्टियों का सपोर्ट नहीं मिलेगा. ऐसे में वह विश्वास मत हार जाएगी. ऐसे में कनाडा में नई पार्टी की सरकार बननी तय है.
 

कनाडा में किसके पास कितनी सीटें?
कनाडा की संसद हाउस ऑफ कॉमन्स (लोकसभा) में 338 सीटें है. हुमत का आंकड़ा 170 है. लिबरल पार्टी के 153 सांसद हैं. पिछले साल खालिस्तानी समर्थक कनाडाई सिख सांसद जगमीत सिंह की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (NDP) ने ट्रूडो सरकार से अपने 25 सांसदों का समर्थन वापस ले लिया था.

NDP से गठबंधन टूटने की वजह से ट्रूडो सरकार अल्पमत में आ गई थी. हालांकि, 1 अक्टूबर को हुए फ्लोर टेस्ट में ट्रूडो की लिबरल पार्टी को एक दूसरी पार्टी का समर्थन मिल गया था. ट्रूडो की विपक्षी कंजरवेटिव पार्टी के पास 120 सीटें हैं.

कनाडा में ट्रूडो से नाराज क्यों हैं लोग?
-कनाडा के लोगों में ट्रूडो सरकार के खिलाफ नाराजगी बढ़ती जा रही है. इस नाराजगी की सबसे बड़ी वजह आर्थिक अस्थिरता और बढ़ती महंगाई है. यहां खाने-पीने और रहने का खर्चा बढ़ता ही जा रहा है.
- इसके साथ ही पिछले कुछ समय से कनाडा में कट्टरपंथी ताकतें तेज हुई हैं. खालिस्तानी हमलों और गतिविधियों से भी लोग परेशान हैं.
-अप्रवासियों की बढ़ती संख्या और कोविड-19 के बाद बने हालातों के चलते ट्रूडो को राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.

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लिबरल पार्टी में कौन हो सकता है ट्रूडो का रिप्लेसमेंट?
लिबरल पार्टी में टॉप लीडर चुनने के लिए कई मीटिंग रखी जाती है. कई प्रोसेस होते हैं. इसमें कई महीने लग जाते हैं. कई मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अगर ट्रूडो इस्तीफा देते हैं, तो लिबरल पार्टी की मुख्य चुनौती मास अपील वाला नेता ढूंढना होगा. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लिबरल पार्टी में विदेश मंत्री मेलानी जोली​​​​​​, डोमिनिक लेब्लांक, मार्क कानी जैसे कई नाम हैं जो ट्रूडो की जगह ले सकते हैं.

पहली बार 2015 में PM बने थे ट्रूडो
बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री पियर ट्रूडो के बड़े बेटे जस्टिन ट्रूडो 2013 में लिबरल पार्टी के चीफ बने थे. उन्होंने 2015 में पहली बार में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. ट्रूडो चौथी बार प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर रहे हैं. हालांकि, कनाडा में पिछले 100 सालों में कोई भी प्रधानमंत्री लगातार 4 बार चुनाव जीतकर नहीं आया है.

पिछले 3 चुनावों में ट्रूडो का प्रदर्शन?
कनाडा में 2015 में हुए चुनाव में ट्रूडो की लिबरल पार्टी को 184 सीटें मिली. 2019 में हुए इलेक्शन में सीटों की संख्या घटकर 157 हो गई. आखिरी बार 2021 में चुनाव हुए. इसमें ट्रूडो की पार्टी को 158 सीटें मिलीं. फिलहाल ट्रूडो की पार्टी के पास 153 सांसद हैं.

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क्या कहते हैं सर्वे?
ट्रूडो की राजनीतिक परेशानियां तब सामने आईं, जब पियरे पोइलिवरे के नेतृत्व वाली विपक्षी कंजर्वेटिव पार्टी को सर्वे में अच्छी बढ़त मिलती दिखी. ट्रूडो के कार्बन टैक्स को रिजेक्ट करने और कनाडा के हाउसिंग क्राइसिस को खत्म करने की बात करके पोइलिवरे ने आर्थिक निराशाओं का फायदा उठाया है. 

पिछले साल अक्टूबर में हुए एक सर्वे के मुताबिक, अगर कनाडा में चुनाव होते हैं तो कंजर्वेटिव पार्टी को बहुमत मिल सकता है, क्योंकि जनता बढ़ती महंगाई से परेशान है. इप्सोस के एक सर्वे में सिर्फ 28% कनाडाई लोगों का ही कहना था कि ट्रूडो को फिर से चुनाव लड़ना चाहिए. वहीं, एंगस रीड इंस्टीट्यूट के मुताबिक ट्रूडो की अप्रूवल रेटिंग गिरकर 30% पर आ गई है. दूसरी तरफ उन्हें नापसंद करने वालों की संख्या 65% तक पहुंच गई है.

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पर्सनल लाइफ में भी आई थीं मुश्किलें
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को न सिर्फ पॉलिटिकल लाइफ बल्कि पर्सनल लाइफ में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. अगस्त 2023 में उनका तलाक हो गया था. ट्रूडो और सोफी ने 18 साल की शादी खत्म करके हुए तलाक ले लिया था. दोनों ने लीगल सेपरेशन एग्रीमेंट पर साइन किए थे. जस्टिन और सोफी की शादी मई 2005 में हुई थी. उनके 3 बच्चे हैं.

कनाडा में PM पद पर रहते हुए पत्नी से अलग होने वाले ट्रूडो दूसरे प्रधानमंत्री हैं. उनसे पहले उनके पिता और पूर्व PM पियरे ट्रूडो 1979 में अपनी पत्नी मार्गरेट से अलग हो गए थे और 1984 में दोनों का तलाक हो गया था.

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