होली पर इस बार चांद के चेहरे पर भी चढ़ जाएगा लाल रंग, समझिए ऐसा क्यों होगा

Blood Moon Explained: ब्लड मून होता क्या है और चांद कैसे एकदम सुर्ख लाल हो जाता है?

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ब्लड मून में चांद क्यों हो जाता है लाल?
नई दिल्ली:

इस बार की होली पर चांद के चेहरे पर भी लाल रंग लगने वाला है. अरे कोई ‘चंदा मामा' को गुलाल लगाने नहीं जा रहा. उस दिन एक दुर्लभ खगोलीय घटना घटेगी जब चंद्रमा 65 मिनट के लिए लाल हो जाएगा. एक खास तरह का चंद्र ग्रहण लगेगा जिसे 'ब्लड मून' कहते हैं और यह चंद्रमा को गहरे लाल रंग में बदल देगा. 
चलिए आपको एकदम आसान भाषा में बताते हैं कि आखिर ये ब्लड मून होता क्या है और चांद कैसे एकदम सुर्ख लाल हो जाता है. इसके जवाब से पहले आप जानिए कि ब्लड मून चंद्र ग्रहण कब लगेगा और आपको भारत में यह नजर आएगा या नहीं.

ब्लड मून चंद्र ग्रहण कब लगेगा?

NASA की वेबसाइट के आंकड़ों के अनुसार ब्लड मून की घटना 14 मार्च को अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका सहित धरती के पश्चिमी गोलार्ध में दिखाई देगी. यानी भारत में नहीं दिखेगा. 

NASA के अनुसार, ब्लड मून के 1.05 घंटे तक रहने की संभावना है. ग्रहण का बाकि भाग (ब्लड मून नहीं) 13 मार्च की देर रात से 14 मार्च, 2025 (IST) की सुबह तक दिखाई देगा. NASA की वेबसाइट के अनुसार अमेरिका के स्थानीय लोगों के लिए ग्रहण 13 मार्च को लगभग 11:57 बजे EDT पर शुरू होगा.

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ब्लड मून किसे कहते हैं?

सबसे पहले जान लीजिए की ब्लड मून एक प्रकार का चंद्र ग्रहण ही है. ब्लड मून को समझने के लिए आपको चंद्र ग्रहण क्यों लगता है, यह जानना होगा. चंद्र ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आ जाती है. इससे पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है और चंद्रमा का वह हिस्सा हमें नजर नहीं आता.

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अब बात ब्लड मून की. यह पूर्ण चंद्रग्रहण की स्थिति होती है जो दुर्लभ भी होता है. इसमें पृथ्वी की छाया का सबसे काला भाग, पूरे चंद्रमा को कवर करता है.

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आखिर ब्लड मून में चांद का रंग लाल क्यों हो जाता है?

अब आप कहेंगे कि जब ब्लड मून में पूर्ण चंद्रग्रहण की स्थिति होती है और पृथ्वी की छाया पूरे चांद को कवर कर लेती है तब तो हमें कुछ नजर नहीं आना चाहिए. चांद तो एकदम छाया में ढक जाना चाहिए. दरअसल ऐसा होता नहीं है. आपका यह सोचना एकदम सही है कि चंद्रमा पूरी तरह से पृथ्वी की छाया में है. लेकिन ठीक उसी समय, पृथ्वी के सूर्योदय और सूर्यास्त का थोड़ा सा प्रकाश चंद्रमा की सतह पर पड़ता है. क्योंकि प्रकाश की ये तरंगें सूर्योदय और सूर्यास्त की वजह से बहुत दूरी तय करती है, वे लाल दिखती हैं. लाल रंग की वेबलेंथ (तरंगदैर्घ्य) सभी रंगों में सबसे ज्यादा है, यह लंबी दूरी तय करने के बाद भी सबसे कम फैलती हैं. जब यह लाल रोशनी चंद्रमा की सतह से टकराती है तो वह भी लाल दिखाई देता है.

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पूर्ण चंद्रग्रहण में चांद लाल क्यों दिखता है?
Photo Credit: अल्टर्ड बाई एनडीटीवी/ NASA

चंद्रमा कितना लाल दिखाई देगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि वायुमंडल में कितना प्रदूषण है. उदाहरण के लिए, यदि ज्वालामुखी विस्फोट के तुरंत बाद ग्रहण होता है, तो वायुमंडल में मौजूद कण चंद्रमा को सामान्य से अधिक गहरा दिखाएंगे.

जब क्रिस्टोफर कोलोम्बस ने ब्लड मून का फायदा उठाया

Space.com के स्काइवाचर स्तंभकार जो राव ने लिखा है कि कोलंबस और उसका दल एक द्वीप पर फंसा हुआ था जिसे अब जमैका के नाम से जाना जाता है. कोलंबस के दल ने वहां के कुछ मूल निवासियों की हत्या कर दी या उन्हें लूट लिया. इसके बाद स्थानीय लोग भोजन की तलाश में उनकी की मदद करने के लिए उत्सुक नहीं थे. कोलंबस को एहसास हुआ कि अकाल निकट आ रहा था.

कोलंबस के पास एक पंचांग था जिसमें बताया गया था कि अगला चंद्र ग्रहण कब होगा. इस जानकारी से लैस होकर, उसने स्थानीय लोगों को बताया कि ईसाई देवता इस बात से नाखुश थे कि कोलंबस और उनके दल को भोजन नहीं मिला. कोलंबस ने कहा, भगवान अपने क्रोध को दिखाने के लिए चंद्रमा को लाल कर देंगे.

कोलंबस के बेटे फर्डिनेंड के एक लेख के अनुसार, जैसे ही घटना घटी, डरे हुए लोग "बड़ी चीख-पुकार और विलाप के साथ हर दिशा से रसद से लदे जहाजों की ओर दौड़ने लगे और एडमिरल से उनकी ओर से अपने भगवान से बीच-बचाव करने की प्रार्थना करने लगे."

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