बांग्लादेश को सेक्युलर शब्द से ये कैसी दिक्कत, क्यों संविधान से हटाने का रखा प्रस्ताव, पढ़े - पीछे की पूरी कहानी

अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में कहा कि पहले अल्लाह पर हमेशा भरोसा और यकीन होता था. मैं चाहता हूं कि यह पहले जैसे ही रहे. आर्टिकल 2ए में कहा गया है कि राज्य सभी धर्मों के पालन में समान अधिकार और समानता तय करेगा.

विज्ञापन
Read Time: 3 mins
बांग्लादेश सरकार को क्यों होने लगी है सेक्युलर शब्द से दिक्कत?
नई दिल्ली:

बांग्लादेश की नई सरकार को अब सेक्युलर कहलाने से भी दिक्कत होने लगी है. यही वजह है कि नई सरकार में अटॉर्नी जनरल के पोस्ट पर तैनात मोहम्मद असदुज्जमां ने हाईकोर्ट के सामने ये प्रस्ताव रखा है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस प्रस्ताव में संविधान से सेक्युलर और सोशलिजम शब्द को हटाने की मांग की गई है. अटॉर्नी जनरल ने संविधान से ऑर्टिकल 7ए को भी खत्म करने की बात कही है. दरअसल, ढाका हाईकोर्ट में बुधवार को एक रिट याचिका की सुनवाई चल रही थी. इसी दौरान इस तरह प्रस्ताव रखा गया है. यह रिट याचिका कई लोगों ने मिलकर हाईकोर्ट में दाखिल की थी. इस रिट याचिका में देश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार द्वारा 2011 में गए 15वें संविधान संसोधन की वैधता को चुनौती दी गई है. 

अटॉर्नी जनरल ने दिया ये तर्क 

अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असदुज्जमां ने संविधान से सेक्युलर शब्द हटाने के लिए अहम संसोधन लाने की भी मांग की है. अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में कहा कि पहले अल्लाह पर हमेशा भरोसा और यकीन होता था. मैं चाहता हूं कि यह पहले जैसे ही रहे. आर्टिकल 2ए में कहा गया है कि राज्य सभी धर्मों के पालन में समान अधिकार और समानता तय करेगा. अटॉर्नी जनरल ने तर्क दिया कि संवैधानिक संशोधन में लोकतंत्र नजर आना चाहिए. साथ ही साथ हमें सत्ता के दुरुपयोग को बढ़ावा देने से भी बचना चाहिए. कोर्ट में सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने 7ए और 7बी पर भी आपत्ति जताई, जो ऐसे किसी भी संसोधन पर रोक लगाते हैं, जो कि लोकतंत्र को खत्म भी कर सकता है. 

15वें संसोधन को रद्द करने के पीछे का तर्क 

अटॉर्नी जनरल ने 15वें संसोधन को भी हटाने को लेकर अपने तर्क दिए हैं. उन्होंने कहा है कि यह संसोधन बांग्लादेश की आजादी की विरासत को बाधित करता है. साथ ही यह मुक्ति संग्राम की भावना के साथ-साथ 1990 के दशक के लोकतांत्रिक विद्रोहों का भी खंडन करता है. शेख मुजीबुर रहमान को राष्ट्रपिता के रूप में लेबल करने सहित कई संसोधन राष्ट्र को बांटते हैं. और तो और ये अभिव्यक्ति की आजादी में भी बाधा उत्पन्न करते हैं. उन्होंने कहा है कि शेख मुजीब के योगदान का सम्मान करना जरूरी है लेकिन इसे कानून बनाकर लागू करना कहीं ना कहीं विभाजन को बढ़ावा देने जैसा है.

हसीना को भी बांग्लादेश लाने की है तैयारी

आपको बता दें कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने बीते रविवार को कहा कि वह अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना और अन्य 'भगोड़ों' को भारत से वापस लाने के लिए इंटरपोल से मदद मांगेगी ताकि उन सभी पर मानवता के खिलाफ कथित अपराधों के लिए मुकदमा चलाया जा सकें. हसीना और उनकी पार्टी के नेताओं पर सरकार विरोधी छात्र आंदोलन को क्रूर तरीके से दबाने का आदेश देने का आरोप है. 

बड़े पैमाने पर विद्रोह में बदल गया था आंदोलन

बाद में यह आंदोलन बड़े पैमाने पर विद्रोह में तब्दील हो गया था, जिस कारण हसीना को पांच अगस्त को गुप्त रूप से भारत भागना पड़ा. मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार के अनुसार, विरोध प्रदर्शनों के दौरान कम से कम 753 लोग मारे गए और हजारों लोग घायल हुए. इस घटना को यूनुस ने मानवता के विरुद्ध अपराध और नरसंहार बताया.

Featured Video Of The Day
पेशवा बाजीराव का महल और 'वो' मजार, किले में नमाज और मच गया बवाल | Kachehri | Meenakshi Kandwal
Topics mentioned in this article