तीन दशक पहले लाखों लोगों का नरसंहार देख चुका रवांडा अब तरक्की की राह पर बढ़ चला है. रवांडा की राजधानी किगाली में कॉमनवेल्थ बैठक चोगम 2022 का आयोजन किया गया. हालांकि रवांडा कभी भी ब्रिटिश उपनिवेश का हिस्सा नहीं रहा, लेकिन 2009 में वो कॉमनवेल्थ देश के इस समूह में शामिल हुआ. रवांडा में आयोजित कॉमनवेल्थ हेड ऑफ़ गवर्नमेंट मीटिंग यानि चोग़म 2022 का आयोजन इस बात का बड़ा सबूत है कि कभी नरसंहार के लिए बदनाम रहने वाले इस देश ने दुनिया में किस तरह से अपनी जगह को मज़बूत किया है.
रवांडा का क्षेत्रफल 26 हज़ार वर्ग किलोमीटर है और आबादी सवा करोड़ से कुछ अधिक. ये पहला ऐसा अफ़्रीकी देश बन गया है जिसने ब्रिटिश औपनिवेश का हिस्सा नहीं रहने के बाद भी 54 देशों के संगठन के सम्मेलन का आयोजन किया है. राष्ट्रपति पॉल कगामी इसे रवांडा की तरक्की और राष्ट्रीय सम्मान से जोड़ कर देखते हैं.
प्रेस कांफ्रेंस में जब राष्ट्रपति कगामी से रवांडा में मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों से जुड़ा सवाल पूछा गया तो राष्ट्रपति किगामी ने इसे रवांडा को बदनाम करने की पश्चिमी देशों की साज़िश क़रार दिया. उन्होंने कहा कि रवांडा को अपने मूल्य ख़ुद तय करने का अधिकार है. उसे अमेरिका या यूके की नसीहतों की ज़रुरत नहीं है.
हालांकि 20 सालों से रवांडा पर राज कर रहे राष्ट्रपति कगामी पर उनके विरोधी तीखे हमले करते रहे हैं. आलोचक उन पर तानाशाही तरीक़े अपनाने तक का आरोप भी लगाते हैं, लेकिन जिस तरह से उन्होंने रवांडा को आर्थिक तरक्की की राह दी है और दुनिया के देशों से जोड़ा उसके लिए उनकी तारीफ़ भी होती है. रवांडा के लोगों की औसत आयु क़रीब 20 साल है, यानि कि ये युवाओं का देश है और किगाली को आईटी हब बनाने की कोशिश पूरे अफ़्रीका के लिए अहमियत रखता है.
चोगम के आयोजन ने किगाली शहर को नए सिरे से दुनिया के मानचित्र पर उभारा है. यहां शहर की साफ़ सफ़ाई पर बरबस ही निगाह ठहर जाती है. रवांडा के शहर और गांवों में जो सफ़ाई अभियान चलाया गया, उसमें नागरिकों के साथ-साथ तमाम ओहदेदारों को भी ज़िम्मेदार बनाया गया है.
रवांडा का ज़िक्र आते ही ज़िक्र आता है 1994 के नरसंहार का और उस नरसंहार की ख़ौफ़नाक दास्तान को समेटे हुआ है किगाली जीनोसाइड मेमोरियल. यहां पर दुनिया भर से लोग आते हैं देखने के लिए कि आख़िर हुआ क्या और ये समझने के लिए कि क्या नहीं होना चाहिए.
जेनोसाइड मेमोरियल आने वाले सभी विजिटर को नरसंहार में किसी तरह बच गए लोगों की ख़ौफ़नाक यादों से रुबरू कराया जाता है. रवांडा का ये इतिहास मानवीय सभ्यता के सबसे घिनौने उदाहरणों में शुमार है.
रवांडा की आबादी में क़रीब 85 फ़ीसदी हूतू रहे हैं. लेकिन राजतंत्र के रूप में लंबे समय तक देश पर अल्पसंख्यक तुत्सी समुदाय का दबदबा रहा. 1959 में हूतू ने तुत्सी राजतंत्र को उखाड़ फेंका, जिसके बाद हज़ारों तुत्सियों को युगांडा जैसे पड़ोसी देशों में शरण लेनी पड़ी. इसके बाद तुत्सियों ने एक विद्रोही संगठन रवांडा पैट्रिऑट फ्रंट (आरपीएफ़) बनाया. 1990 में इस संगठन के रवांडा आने के बाद एक बार फिर हूतू और तुत्सी के बीच संघर्ष शुरु हुआ, जो 1993 में एक शांति समझौते से साथ ख़त्म हुआ. लेकिन इसके बाद जो हुआ उसके निशान इस मेमोरियल में देखे जा सकते हैं.
6 अप्रैल 1994 को रवांडा के तब के राष्ट्रपति जुवेनल हाबयारिमाना और बुरुंडी के राष्ट्रपति केपरियल नतारयामिरा को ले जा रहे विमान को किगाली में गिरा दिया गया. विमान में सवार सभी लोगों की मौत हो गई. विमान हूतू चरमपंथियों ने गिराया या तुत्सियों के विद्रोही संगठन ने इसका फ़ैसला नहीं हो पाया. लेकिन विमान में सवार दोनों देशों के राष्ट्रपति हूतू समुदाय से आते थे, लिहाज़ा शक तुत्सी समुदाय के लोगों पर जताया गया, फिर नरसंहार का सिलसिला शुरु हो गया.
सौ दिनों तक चले इस नरसंहार में 10 लाख से अधिक लोग मारे गए. नफ़रत ऐसी फ़ैली थी कि हूतू समुदाय के पतियों ने तुत्सी समुदाय की अपनी पत्नियों तक की हत्या से गुरेज़ नहीं किया.
धीरे-धीरे छोटी-छोटी घटनाओं से शुरू हुआ ये सब कुछ और फिर बढ़ता गया और 1994 में जो हुआ वो दुनिया ने देखा. लेकिन दुनिया ने सिर्फ़ देखा उसे पहचाना नहीं और ना ही रोकने की कोई कोशिश की. ऐसा नहीं है कि किसी ने आगाह नहीं किया था, कई लोग थे जिन्होंने आगाह किया था.
विचलित कर देने वाली तस्वीरों से पटे पड़े इस मेमोरियल में एक सेक्शन ऐसा भी है जहां नरसंहार में मारे गए लोगों के नरमुंडों को रखा गया है. 100 दिनों तक चले इस नरसंहार में 10 से 12 लाख लोगों की हत्या की गई.
नरसंहार के शिकार लाखों लोगों की तस्वीर मिलना नामुमकिन है. जिनकी मिल सकी उनको ही यहां प्रदर्शित किया गया है. इनमें बच्चों की तस्वीरें भी शामिल हैं जो क्रूरता के शिकार हुए. दूधमुंहे बच्चों से लेकर किशोर उम्र तक के बच्चों की तस्वीरें अंदर से झकझोर देती हैं.
किगाली जेनोसाइड मेमोरियल आकर इस बात का एहसास होता है नफ़रत प्रॉपगैंडा और एक समुदाय को दूसरे के ख़िलाफ़ खड़े करने का परिणाम कितना भयावह होता है. 1994 में जिस तरह से हुतू को तुत्सी समुदाय के खिलाफ खड़ा किया गया और इसकी वजह से 10 लाख से अधिक लोगों की नृशंस हत्या हुई, उसमें से ढाई लाख लोगों के शवों को यहाँ पर क़ब्र मिली बाकियों को शायद वो भी नहीं ये पूरा नरसंहार इस बात की सीख देता है कि आपस में सौहार्द और भाईचारा से रहना कितना ज़रूरी है अन्यथा किस तरह से क़त्लेआम हो सकता है और उसके बाद सदियों तक उसके दर्द को झेलना पड़ता है.
रवांडा के लोगों ने नेवर अगेन शब्द की गांठ बांध ली है. नरसंहार के समय से जुड़े हर स्मारक पर ये दो शब्द लिखे मिलते हैं. किगाली के होटल मिल कॉलिंस में 1994 के नरसंहार के दौरान 1200 से अधिक लोगों ने शरण लेकर अपनी जान बचाई. इसी होटल पर हॉलीवुड की एक फ़िल्म भी बनी है होटल रवांडा.
1994 नरसंहार के दौरान रेडियो से ऐलान किया जाता था. 'तिलचट्टों को साफ़ करो' जिनका मतलब था तुत्सियों को मारो. तुत्सियों के लिए ख़राब से ख़राब शब्द इस्तेमाल किए जाते थे. सांप से लेकर मगरमच्छ तक. मक़सद उनको बुरा बता कर उनको मारने के लिए लोगों को उकसाना था.
उस समय की सत्ताधारी पार्टी MRND की युवा शाखा 'इंतेराहाम्वे' खूनी सेना में बदल गई थी. इनके अलग अलग ग्रुपों को हथियार और हिट लिस्ट दिया जाता था. कंगूरा नाम के अख़बार और उसके संपादक हसन नेज़े ने भी नफ़रत का प्रोगैंडा खूब फैलाया. हूतू चरमपंथियों द्वारा स्थापित किए गए रेडियो स्टेशन 'आरटीएलएम' से प्रमुख नामों का प्रसारण कर उनकी हत्या के लिए उकसाया जाता था.
समय के साथ अब यहां सब कुछ बदल गया है. यहां से अब महज़ रेडियो नहीं बल्कि टीवी का भी प्रसारण होता है. अब यहां काम करने वाले पत्रकार प्रशिक्षित और पेशेवर हैं. नफ़रत और प्रोपेगैंडा की वजह से रवांडा को कैसी भारी क़ीमत चुकानी पड़ी इसका एहसास है।.
रवांडा में भारतीय अलग-अलग क्षेत्रों में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. महेंद्र सिंह परमार हैं ने कई अफ़्रीकी देशों के बाद किगाली के स्पेशल इकॉनॉमिक ज़ोन में एक छोटी सी फ़ैक्ट्री लगाई है. मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती की फ़ैक्ट्री. रवांडा से मलेरिया उन्मूलन का स्लोगन भी दिया है.
संस्कृति और उनके पति चिराग दसवानी ने भी किगाली में अपना बिजनेस बढ़ाया है. यहां का ये शॉपिंग कॉम्प्लेक्स इन्होंने ही बनाया है जहां मुख्यतौर पर रवांडा की संस्कृति से जुड़ी चीजें मिलती हैं. उन्होंने कहा कि मैंने सोचा यहां आकर काम करूं. एक साल के लिए आया था ये 11वां साल है.
रवांडा में क़रीब तीन साढ़े तीन हज़ार भारतीय हैं जो अलग अलग क्षेत्रों में अपना योदगान कर रहे हैं. जगन 30 साल से किगाली में हैं और 1994 के नरसंहार के समय भी यहीं थे. ये सभी भारतीय सालों से यहां हैं. दरअसल रवांडा इनके लिए रोज़ी रोटी के लिए नई संभावाएं लेकर आया है. आईटी क्षेत्र में काम करने वाले वेणु गोपाल रेड्डी तो यहां की तारीफ़ किए थकते नहीं.
इस संगठन से अभी तीन चार सौ भारतीय ही जुड़े हैं लेकिन इन्होंने अपने लिए इंडिया क्लब बना लिया है जहां ये नियमित रूप से आपस में मिलजुल सकें.
रवांडा जितना तारीख़ी है उतना ही ख़ूबसूरत भी. यहां के जंगल और नेशनल पार्क दुर्लभ वन्य जीवों के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं. एकागेरा पार्क की 11 सौ वर्ग किलोमीटर से अधिक में फ़ैला है. यहां अत्याधिक तरीक़े से निगरानी रखी जाती है. शेरों के झुंड में कईयों की गर्दन पर ट्रैकर लगाया जाता है. शिकार को रोकने के लिए यहां प्रशिक्षित कुत्तों का भी सहारा लिया जाता है.
कंट्री आफ़ थाइजेंड हिल्स. रवांडा के बारे में यही कहा जाता है. रवांडा कैसे एक दुखद अतीत से निकलकर एक अच्छे वर्तमान से गुज़र रहा है और बेहतर भविष्य की तरफ़ बढ़ रहा है.