अफ्रीका में समुद्री कछुए का मांस (African Sea Turtle Meat) खाने से आठ बच्चों समेत 9 लोगों की मौत हो गई और 70 से ज्य़ादा लोग बीमार हो गए. यह घटना ज़ांज़ीबार द्वीपसमूह के पेम्बा आइलैंड पर हुई. यहां पर समुद्री मछुए का मांस खाने से 8 बच्चों और एक युवा की जान चली गई, ये जानकारी मेट्रो के हवाले से सामने आई है. मकोआनी जिला चिकित्सा अधिकारी, डॉ हाजी बकारी ने बताया कि 78 लोग अस्पताल में भर्ती हैं. बता दें कि जहर के खतरों के बावजूद इस क्षेत्र में कछुए के मांस को लोग बहुत ही चाव से खाते हैं. इस इलाके में कछुए का मांस बहुत ही स्वादिष्ठ डिश मानी जाती है. लोगों का मानना है कि कछुए के मांस का स्वाद गोवंश के मांस जैसा होता है.
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समुद्री कछुए का मांस खाने से 75 अस्पताल में भर्ती
डॉ. बकारी ने बताया कि लैब में किए गए परीक्षणों से इस बात की पुष्टि हुई है कि सभी बीमारों ने समुद्री कछुए का मांस खाया था. उन्होंने बताया कि कई बार कछुए का मांस जहरीला भी हो सकता है, जिसे चेलोनिटॉक्सिज्म कहा जाता है. हालांकि इसके जहरीले होने का सही कारण सामने नहीं आया है. टर्टल फाउंडेशन चैरिटी के मुताबिक, ऐसा माना जाता है कि कछुए जहरीले शैवाल खाते हैं, इसीलिए इनके भीतर भी जहर का अंश होता है.
समुद्री कछुए में मिले जहर के अंश
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक, 'चेलोनिटॉक्सिज्म (समुद्री कछुए के मांस की विषाक्तता) एक दुर्लभ और कभी-कभी घातक प्रकार की खाद्य विषाक्तता है जो समुद्री कछुए खाने से होती है.'' यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षणों की वजह बनता है. इसके बाद ''न्यूरोलॉजिकल, हेपेटिक और रीनल टॉक्सिसिटी'' होती है. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन ने कहा, "स्टडी से पता चला है कि समुद्री कछुए के सभी हिस्से संभावित रूप से जहरीले होते हैं. इसे खाने से जी मिचलाना, उल्टी जैसे हल्के लक्षणों से लेकर न्यूरोलॉजिकल गंभीर बीमारियों जांसे कोमा और मौत तक हो सकती है.''
पेम्बा द्वीप पर कछुआ खाने से पहले भी हुई थी 7 की मौत
अफ्रीका के पेम्बा आयलैंड पर कछुए का मांस खाने से 9 लोगों की मौत के बाद अधिकारियों ने आपदा प्रबंधन की एक टीम भेजी है. इस टीम ने लोगों से समुद्री कछुओं को खाने से बचने की सलाह दी. बता दें कि ऐसी ही एक घटना साल 2021 में भी हुई थी. उस समय पेम्बा द्वीप पर कछुए का मांस खाने से तीन साल के बच्चे समेत सात लोगों की मौत हो गई थी. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जहर का सबसे बुरा असर बच्चों और बूढ़ों पर हो सकता है. इंडोनेशिया, माइक्रोनेशिया और भारत के हिंद महासागर द्वीपों में भी इसी तरह के मामले सामने आ चुके हैं, लेकिन अभी तक जहर का कोई इलाज नहीं मिल पाया है.
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