प्रकाशित: अगस्त 21, 2018 09:00 PM IST | अवधि: 32:09
Share
आज एक ऐसी कहानी पर बात करेंगे जिसके लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं है. ऐसी बहुत ही कम कहानियां होती हैं जिनके लिए कोई ज़िम्मेदार नहीं होता. ऐसी कहानियों को हर खेमे के लोग बिना अपराध बोध के देख सकते हैं. देखते हुए कोई ज़िम्मेदार दिख जाए तो यह उनका दोष होगा. उनकी नज़र का कसूर होगा. मान लीजिए कि आप लेट गए हैं. आंखें बंद हैं और आपकी छाती सड़क बन गई है. उस छाती पर एक नंगी औरत धम-धम करती हुई दौड़ी चली जा रही है. उसके पीछे धम धम करते हुए बहुत से नौजवान दौड़े चले आ रहे हैं. आंख बंद कर लेने से आपको इस बात की तकलीफ़ नहीं होगी कि औरत का चेहरा कैसा था, वो कौन थी, उसके पीछे मारने के लिए दौड़े चले आ रहे नौजवानों का चेहरा कैसा था, वो कौन थे. भीड़ की इतनी सूचनाएं हमारे आसपास जमा हो गई हैं कि अब सूचनाएं बेअसर होने लगी हैं. उनका असर ही नहीं होता है. आपको लगता है कि वही पुरानी बात है. पहले आप उस आवाज़ को महसूस कीजिए, धम-धम की जो एक औरत को नंगा दौड़ाती है और उस शोर को जो एक नंगी औरत के पीछे गूंजता है.