इन दिनों जिधर देखिए, वोटरों को जागरूक करने के लिए चुनाव आयोग अभियान पर अभियान चला रहा है. लेकिन क्या वो ख़ुद साफ़-सुथरे चुनावों को लेकर सख़्त है? क्या वो ख़ुद चुनाव की आचार संहिता का सम्मान कर रहा है? जब पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट की फटकार पड़ी तो आयोग ने फटाफट कई नेताओं के प्रचार पर पाबंदी लगाई. योगी आदित्यनाथ और मायावती से लेकर सिद्धू और आज़म खान तक पर पाबंदी लगाई गई. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ शिकायतों पर आयोग ढीला क्यों है. 9 अप्रैल को लातूर में प्रधानमंत्री ने बयान दिया कि पुलवामा के शहीदों के नाम क्या पहली बार वोट देने वाले मतदाता अपना वोट समर्पित नहीं कर सकते हैं. इस बयान के खिलाफ आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत की गई है, 24 अप्रैल तक कोई फैसला नहीं हुआ है. आयोग को इतनी देरी क्यों हो रही है.