ऐसा कभी नहीं हुआ कि एक हाईप्रोफाल राष्ट्रीय मेहमान भारत आया हो और भारत की राजधानी दिल्ली में दंगे हो रहे हों. ये और बात है कि इस हिंसा की प्रशासनिक ज़िम्मेदारी अब के मीडिया समाज में किसी की नहीं होती है, फिर भी ये बात दुखद तो है ही कि हम किस तरह की राजधानी दुनिया के सामने पेश करना चाहते हैं. इस राजधानी के चुनाव में गोली मारने के नारे लगाए गए, उसके बाद सरेआम पिस्टल लहराने और गोली चलाने और चलाने की कोशिश की यह तीसरी घटना हो गई है. क्या वाकई किसी ने इस बात की फिक्र नहीं की कि केंद्र सरकार का तंत्र राष्ट्रपति ट्रंप के स्वागत की तैयारियों में लगा है तो दिल्ली शांत रहे. दंगे की नौबत न आए. या फिर दिल्ली के पूर्वी हिस्से में हिंसा इसलिए हुई या होने दिया गया ताकि जब तमाम चैनलों के स्क्रीन ट्रंप के आगमन की तस्वीरों से भरे हुए हों, तब हिंसा का खेल खेला जाए.