भीड़ को राजनीतिक मान्यता मिलने लगी है. औपचारिकता के नाम पर दो तीन दिन बीत जाने के बाद निंदा जैसा बयान आता है. फिर उसके कुछ दिन बाद भीड़ किसी और को मार देती है. आप सोच रहे हैं कि इससे हमारा क्या, लेकिन आप यह नहीं देख रहे हैं कि एक को मारने के लिए आपके ही अपने हत्यारे बन रहे हैं. इस भीड़ का एक राजनैतिक समर्थन है क्योंकि जो ज़हर इस भीड़ को उकसाता है, वो किस फैक्ट्री में पैदा हो रहा है, आप देखना चाहेंगे तो आराम से दिख जाएगा. नहीं देखना चाहेंगे तो कोई बात नहीं, पर आपका ही कोई किसी भीड़ में जाकर किसी को मार आएगा. इसलिए अपनों को हत्यारा बनाने से पहले संभल जाइये.