द्वापर युग में भी छठ व्रत का विशेष महत्व रहा है। मान्यता है कि जब पांडव कठिन समय से गुजर रहे थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखकर सूर्य देव से अपने परिवार के कल्याण की प्रार्थना की थी। उनकी भक्ति और श्रद्धा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने पांडवों को शक्ति और समृद्धि का आशीर्वाद दिया। दूसरी ओर, दानवीर कर्ण को सूर्य उपासना का प्रथम साधक माना जाता है। वह प्रतिदिन प्रातःकाल नदी में स्नान कर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते थे। उनकी इस दिनचर्या से ही सूर्य पूजा की परंपरा स्थापित हुई, जो आज भी छठ पर्व के रूप में श्रद्धा से निभाई जाती है।