ये कहानी है, धर्म के लिए बलिदान हुए 745 नागा साधुओं की,अंग्रेजों के खिलाफ उनके संघर्ष की,वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की और संत गंगादास की, एक ऐसी कहानी जिसे सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे. अंदाजा लगाइये कि वो मंजर क्या होगा जब ग्वालियर के नागा साधुओं के एक आश्रम में महारानी लक्ष्मीबाई के अंतिम संस्कार के लिए चिता सजाई जा रही थी. तभी आश्रम पर अंग्रेजी फौज हमला बोल देती है.अंग्रेज किसी भी हालत में रानी के मृत शरीर और उनके महज 9 साल के दत्तक पुत्र दामोदर राव को अपने कब्जे में लेना चाहते हैं. लेकिन झांसी की रानी का शव अंग्रेजों के हाथ ना लगे इसके लिए आश्रम में रहने वाले नागा साधुओं की टोली अंग्रेजी फौज से भीड़ जाती है. और अंग्रेजों के साथ साधुओं का ये संघर्ष तब तक चलता रहता है जब तक कि रानी के चिता की आग शांत नहीं हो जाती. लेकिन जब तक महारानी लक्ष्मीबाई की चिता की आग ठंड़ी होती है तब तक कुल 745 नागा साधु अपने वचन और धर्म की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे. क्योंकि धर्म की रक्षा ही नागा साधुओं के जीवन का सबसे बड़ा धर्म होता है. अब आइये शुरु करते हैं इतिहास के पन्नों में 'दफ्न' नागा साधुओं के वीरता की ये रोंगटे खड़ी कर देने वाली कहानी.