क्या भारत में बीते 15 साल में आई मोबाइल क्रांति अब बिखरने वाली है? जिस स्मार्टफोन के सहारे हमने दुनिया को मुट्ठी में करने का भ्रम पाल रखा है, क्या वो छिन जाएगा? क्या फिर से हम बिजली, टेलीफोन या और दूसरे तमाम तरह के बिल देने के लिए लाइन में लगना शुरू करेंगे? ये सवाल और ख़याल डराने वाला है. लेकिन इसलिए पैदा हुआ है कि टेलीकॉम कंपनियों की कमर टूटती हुई लग रही है. कल वोडाफोन और एयरटेल को लेकर आई रिपोर्ट बताती है कि उन्हें जो घाटा हुआ है, आर्थिक इतिहास में कम कंपनियों को हुआ होगा. वोडाफोन को इस तिमाही में 50,922 करोड़ का घाटा हुआ है, जबकि एयरटेल को 23,045 करोड़ का घाटा हुआ है. बेशक, इसका एक बड़ा हिस्सा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आया है, जिसके तहत उन्हें भारत सरकार को वर्षों का बक़ाया चुकाना है, लेकिन इसके अलावा भी टेलीकॉम इंडस्ट्री की होड़ उनके लिए जानलेवा साबित हो रही है. सवाल है, कौन है इसका ज़िम्मेदार. एक उंगली जियो की तरफ़ उठती है जो अपनी बहुत सस्ती सर्विस से बिल्कुल एकाधिकार की ओर बढ़ रहा है. लेकिन ये तो बाजार का नियम है. तो सवाल है, ये हालात क्यों हैं और उद्योग इनसे कैसे उबर सकता है.