पाकिस्तान, जो कभी आतंक को अपनी ताकत समझता था, आज उसी आतंक के आगे झुकने पर मजबूर है। काबुल पर हुए पाकिस्तानी हवाई हमलों के बाद अफगानिस्तान ने पलटवार किया और 58 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराने का दावा किया। अब डर के साए में पाकिस्तान तुर्की की राजधानी इस्तांबुल में शांति वार्ता की भीख मांग रहा है। लेकिन असली बाधा है टीटीपी — तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान। तालिबान साफ कह चुका है कि वह अपने “भाइयों” को नहीं सौंपेगा। यही वजह है कि शांति का यह रास्ता लंबा और मुश्किल है। जब तक पाकिस्तान अपने ही पाले आतंक के खिलाफ सख्त कदम नहीं उठाता, तब तक यह अस्थिर शांति कभी भी खूनी संघर्ष में बदल सकती है।