हिंदी के वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण नहीं रहे. वे नब्बे साल के थे. 4 जुलाई से कोमा में थे. इसलिए यह नहीं कह सकते कि उनकी मृत्यु शोक का विषय है. सिर्फ़ इस तर्क से नहीं कि उन्होंने एक भरी-पूरी उम्र जी ली थी, बीमार थे और इसलिए उन्हें चले जाना चाहिए था. इसलिए भी कि एक कवि के तौर पर कुंवरनारायण जीवन और मृत्यु का खेल समझते थे.