हर चुनाव राजनीति में भाषा की नई गिरावट लेकर आता है. लोकतंत्र के मूल्य भाषा के भीतर भी होने चाहिए ताकि किसी को रंग, धर्म या उसकी आर्थिक सामाजिक स्थिति के कारण कम हैसियत वाला न बताया जाए. लोकतंत्र की सारी लड़ाई अहसासे कमतरी से उबरने की है. स्त्रियों की आज़ादी सिर्फ पहली महिला आईपीएस या रक्षा मंत्री बनने में नहीं है, उनकी आज़ादी उस भाषा से भी मुक्ति पाने की है जिसमें उनके लिए सम्मानजनक शब्द नहीं हैं. उस नज़र से भी मुक्ति पाने की है जो उन्हें खास निगाह से देखती हैं. प्रधानमंत्री जब सोनिया गांधी का नाम लिए बग़ैर कांग्रेस की विधवा कहते हैं तो यह शब्द भारत की उन तमाम महिलाओं का अनादर करता है जो इस हालात में समाज की सोच से लड़ रही हैं. सोनिया गांधी तो सक्षम महिला हैं. लेकिन जब देश के प्रधानमंत्री किसी औरत को विधवा कह दुत्कारते हैं या ललकारते हैं तो वो तमाम औरतों को दुत्कार रहे होते हैं जो इस हालात में अकेली हो जाती हैं.