आपको विश्वास हो या न हो, हम सुप्रीम कोर्ट हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा तो किसानों से लेकिन अहसास करा दिया सरकार को कि हम सुप्रीम कोर्ट हैं. कोर्ट के सवालों के सामने सरकार के वकील बल्लेबाजों के विकेट कभी उखड़ते नज़र आए तो कभी गेंद कहीं और बल्ला कहीं और. पूरी बहस से अगर आप सरकारी पक्ष के तमाम वकीलों की दलीलों से कुछ वाक्यों को चुन लें तो पता चलता है कि सरकार कितने कमज़ोर दलीलों से लड़ रही है और उसकी असली चिन्ता क्या है? यही कि यह न लगे कि सरकार बैकफुट आ गई है. यह न लगे कि किसान जीत गए हैं. यह न लगे कि सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है. यह न लगे कि सरकार हार गई है. इस देश में किसानों के किसी आंदोलन का जीत जाना सरकार की शान और प्रतिष्ठा का प्रश्न कब से हो गया? इस दलील से तो कोई भी सरकार कुछ भी कानून बना देगी और लागू कर देगी. क्या कानून सरकार की प्रतिष्ठा के लिए बनाए जाते हैं या लोगों की भलाई के लिए?
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