हत्या विकास की नहीं हुई है हत्या कहानियों की हुई है. हमारी कल्पनाओं की हुई है. हमारी कल्पनाओं में संस्थाएं कब की मर चुकी हैं. जिनसे हमने रेत की जमीन पर लोकतंत्र का घरौंदा बनाया. जिसे कोई लात मार कर तोड़ जाता है. घरौंदा बनाना घर बनाना नहीं होता इन घरौंदो की कोई कहानी नहीं होती इनके टूटते ही कहानियां भी मर जाती हैं. हमारी संस्थाओं की कल्पनाएं मर चुकी हैं. उनकी कहानियां भी मर चुकी हैं. जिस समाज में कहानियां मर जाती हैं उस समाज में कहानियों के मरने से पहले पाठक और दर्शक मर जाते हैं. कहानियां हमेशा एनकाउंटर के पहले मरती हैं.