NDTV Khabar

रवीश कुमार का प्राइम टाइम: शब्दों के चुनाव में कितने संवेदनहीन हैं हम

 Share

अवसाद पर कभी भी बात की जा सकती है, बल्कि हमेंशा ही की जानी चाहिए. फर्क सिर्फ इतना है कि क्या हमें, आपको, मीडिया को और समाज को पता है कि कब और कितना करना चाहिए. किससे बात की जानी चाहिए. अगर आप इंतजार कर रहे हैं कि अवसाद या आत्महत्या का नाम लेते ही मेरे शब्दों के साथ-साथ फिल्म अभिनेता के पुरानी फिल्मों के वीडियो और गाने चलने लगगें तो आप को निराशा हाथ लगेगी. यह कार्यक्रम अवसाद और आत्महत्या को मनोरंजन में बदलने के लिए नहीं है. यह गंभीर मुद्दे हैं बिना आकर्षित करने वाले म्यूजिक के भी देखने की आदत डाले आप भी और हमें भी आदत डालनी चाहिए.



Advertisement

 
 
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com