भारत का अभिन्न अंग है. भारत का आंतरिक मामला है. तो फिर भारत के अभिन्न और आंतरिक कश्मीर में बाहरी देशों के सांसदों के दौरे को सुविधाएं क्यों उपलब्ध कराई जा रही हैं. यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि जब भारत की लाइन अभिन्न और आतंरिकता की रही है तो इन सांसदों के निजी दौरे की सरकारी व्यवस्था क्यों कराई गई. बड़ा सवाल तो यह है कि इन सांसदों को बुलाया किसने है? आखिर इनके बुलाने के पीछे होमवर्क किसका था? इस बात को रहस्य रखा जा रहा था मगर रहस्य से पर्दा उठ गया है. आप हैरान होंगे कि कश्मीर जैसे संवेदनशील मसले पर एक एनजीओ पहल कर रहा था, वो ईमेल भेज कर सांसदों को बुला रहा था जिस कश्मीर पर भारत की नीति है कि किसी तीसरे का हस्तक्षेप नहीं होगा. इस ईमेल की भाषा बता रही है कि इनके बुलाने की तैयारी में भारत उतना भी अनजान नहीं था, वर्ना कोई एनजीओ यह ईमेल नहीं भेज पाता कि आप भारत आएं 28 अक्तूबर को प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात होगी और 29 अक्तूबर को कश्मीर का दौरा होगा. आप हिन्दी या भोजपुरी में सोच कर देखिए क्या बगैर प्रधानमंत्री की जानकारी के दौरा हो सकता है? आप अवधी और मैथिली में सोच कर देखिए कि क्या इस दौरे के बारे में विदेश मंत्रालय को जानकारी थी? दरअसल हम भले न इस एनजीओ के बारे में जानते हों, इनके चेहरों को न पहचानते हों, लेकिन ये लोग इतने भी गुमनाम नहीं हैं.