1989 से अब तक भारतीय राजनीति बहुत बदल गई. मंडल आया, कमंडल आया, भूमंडलीकरण आया, वीपी सिंह आए, देवगौड़ा आए, अटल आए, मनमोहन आए, मोदी आए, राष्ट्रीय मोर्चा आया, संयुक्त मोर्चा आया, यूपीए आया, एनडीए आया, लेकिन एक आदमी लगभग हर जगह बना रहा. पार्टियों के नाम भले बदलते रहे हों, राम विलास पासवान की हैसियत नहीं बदली. वो जैसे मंत्री बनने के लिए ही भारतीय राजनीति में आए हों. पहचान उन्होंने दलित नेता की बनाई है, लेकिन इस पहचान से कभी बंधे नहीं रहे. जहां जगह मिली, उदारतापूर्वक पहुंच गए. जिसने मंत्री बना दिया, उदारतापूर्वक बन गए. ऐसा नहीं है कि उनके कोई सिद्धांत नहीं हैं. वो सिद्धांत की ही राजनीति करते हैं. सिद्धांतों के आधार पर एक बार मोदी का विरोध भी कर चुके हैं. 2004 में अटल सरकार इसी वजह से छोड़ी थी. लेकिन अब सिद्धांतों की वजह से ही मोदी सरकार का हिस्सा बन गए हैं. अब ये सिद्धांत क्या हैं, ये पासवान से न पूछिएगा. पासवान सवाल नहीं, जवाब हैं- सवाल तो वो राजनीति है जो हर बार उनके स्वागत को तैयार रहती है.