गांवों की हालत भयावह है. जब शहर में ही इलाज नहीं तो गांवों में क्या हाल होगा, बताने की जरूरत नहीं है. लोगों के पास थर्मामीटर तक नहीं है कि बुखार नाप सकें, दवा तो छोड़ दीजिए, ब्लैक में मिलने लगी है. लिहाजा मरने वालों की तादात अधिक है लेकिन सरकारी आंकड़े में कुछ भी नहीं है. हमारे सहयोगी सौरभ शुक्ला रोहतक के एक गांव गए हैं, जहां सरकारी आंकड़े में 10 दिन में 18 लोग मर गए और सरपंच के आंकड़े में 40 लोग मर गए.