बंगाल-बिहार जैसी जगहों में दुर्गा पूजा के बाद दशहरा, कहीं रामलीला और फिर रावण दहन. देशभर में अलग-अलग तस्वीरें दिख रही हैं, लेकिन सूत्र वही बुराई पर अच्छाई की विजय. एक वक्त था जब ये बिल्कुल इतना ही था. नानी-दादी की कहानियां थी, किवदंतियां थीं, चित्रकथाएं भी. लेकिन आज दशहरा का रंग बदल गया है. संस्कृति है पर राजनीति भी है...काफी है. जिस बुराई के पुतले को जलाते हैं वो बुराई भी सिर्फ उतना नहीं है. बुराई के भी कई रंग हैं. कई बुराईयां तो इतनी रंग बिरंगी है कि असली रंग दिखता ही नहीं. गली-मुहल्लों में भी रावण हैं. जहां राम अच्छाई के प्रतीक हैं और रावण बुराई का. इन दो ध्रुवों के बीच भी कितने रावण हैं.