नौकरिया नहीं है. यह त्रासदी तो है, मगर इससे भी बड़ी त्रासदी यह है कि रोजगार मुद्दा नहीं है. लाखों की फीस देकर जो नई नस्ल अलग-अलग संस्थानों से निकल रही है वो कहां जाए? कोविड-19 दौर में इस नई पीढ़ी पर बहुत मार पड़ी है. जो लोग नोकरियों में थे उनकी तो नौकरी ही चली गई, इसके बाद भी रोजगार मुद्दा नहीं है. राजनीति का ऐसा समय, जब बेरोजगारी चरम पर हो और मुद्दा न हो तो वह नेता बनने के लिए कमाल का समय होता है. क्योंकि वह आसान होता है. ऐसा नहीं है कि नौजवानों ने कोई कसर छोड़ी हो, उन्होंने हर दरवाज़ा खटखटाया है. अखबारों ने भी छापा है, टीवी ने भी दिखाया है. अगर मीडिया ने नहीं भी दिखाया तो मंत्रियों के ट्वीटर हैंडल पर लाखों की संख्या में फीड़ किए गए. पर असर क्यों नहीं हुआ? इसलिए नहीं हुआ कि राजनीति अब जनता के नियंत्रण में नहीं रही.