जैसे ही किसानों के जत्थे ने मुंबई में प्रवेश किया, उनके लिए मुंबई बदल गई. लाल बाग का फ्लाईओवर ख़त्म होते ही मोहम्मद अली रोड पर आम लोग पूरी तैयारी के साथ किसानों की मदद के लिए खड़े थे. पानी की बोतल देने लगे, केला और बिस्कुट खिलाने लगे. इनके साथ डॉक्टरों की टीम भी थी जो किसानों के पांव की मरहम पट्टी करने लगी. पेन किलर देने लगे. लोग किसानों के बीच जाकर पूछने लगे कि बताइये आपको कोई तकलीफ तो नहीं है. रुला देने वाला मंज़र था ये. यही नहीं, जब इनके जत्थे रात को सोमाया ग्राउंड से आज़ाद मैदान की तरफ बढ़ने लगे तो स्थानीय लोगों ने बुज़ुर्ग किसानों को अपनी गाड़ी में बिठाकर आज़ाद मैदान तक छोड़ा. उस रात जब हम बेखबर रहे, मुंबई के ये लोग हिन्दुस्तान के उस हिस्से के लिए जाग रहे थे जो अपने अकेलेपन में न जाने कितने साल से फांसी के फंदे पर लटकर कर जान दे रहे थे.