गाज़ा... जहां दो साल की तबाही के बाद बमबारी तो रुक गई है, लेकिन खामोशी में अब भी गोलियों की आवाज़ गूंज रही है। युद्धविराम के बाद उम्मीद थी कि शांति लौटेगी, मगर हालात और खौफनाक हो गए हैं। हमास, जो खुद को गाज़ा का रक्षक कहता है, अब जल्लाद बन बैठा है — अपने ही लोगों को “इजरायल के समर्थक” बताकर सरेआम गोली मार रहा है। आंखों पर पट्टी, घुटनों पर बैठे लोग, और नकाबपोश बंदूकधारी — यह दृश्य किसी युद्ध का नहीं, बदले की आग का है। हमास का कहना है कि वह व्यवस्था बहाल कर रहा है, लेकिन मानवाधिकार संगठन इसे ‘न्यायेतर हत्या’ बता रहे हैं। गाज़ा में अब अदालतें नहीं, सिर्फ बंदूक का कानून है। जो शहर कभी उम्मीदों से जिया करता था, अब डर में सांस ले रहा है। बम गिरने बंद हुए हैं, लेकिन नफ़रत अब भी ज़िंदा है — और जब नफ़रत जिंदा रहती है, तो शांति कभी लौटती नहीं।