फणीश्वरनाथ रेणु के मशहूर उपन्यास 'मैला आंचल' का डॉक्टर प्रशांत पूर्णिया के गांवों में काम कर रहा है. वो कहता है- इस देश में असली बीमारी गरीबी है. इस उपन्यास को छपे 65 साल होने जा रहे हैं. सच्चाई बदली नहीं है, बिगड़ी है. पूर्णिया से क़रीब 300 किलोमीटर दूर है मुज़फ़्फ़रपुर. मुज़़फ़्फ़रपुर कभी लीचियों के लिए मशहूर था. अब भी उसकी लीचियां दूर-दूर जाती हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस शहर की चर्चा एक और वजह से हो रही है. वहां बच्चों को अचानक तेज़ बुख़ार होता है, बदन में ऐंठन होती है, उल्टी होती है, उन्हें चलने में दिक्कत होती है, वो बेहोश हो जाते हैं, और फिर इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं. ये इन्सेफलाइटिस है. वहां के लोग दिमागी बुखार या चमकी बुख़ार भी बोलते हैं. वहां हर साल बड़ी तादाद में बच्चों की मौत होती है. जब ये खबर आती है तब सरकारें नए अस्पताल बनाने का भी वादा करती हैं और बच्चों के टीकाकरण का लक्ष्य तय करती हैं. वैसे ये सिर्फ़ मुज़फ़्फ़रपुर की कहानी नहीं है. पूरे पूर्वांचल की है- यानी उत्तरी बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की. देश के कुछ दूसरे गरीब हिस्सों की भी.