अल्पा छोटी थी जब उनकी माँ मिनाक्षी को कैंसर हुआ था। डाक्टरों ने उन्हें केवल 2 हफ़्ते दिये थे लेकिन उनकी माँ के साहस और मज़बूत मनोबल से मीनाक्षी 10 साल तक जीवित रही। बस इसी से अल्पा ने ठान लिया की कैंसर के मरीज़ों को उनका आत्मबल बनाये रखना है। हौसले से इस बीमारी को मात दिया जा सकता है। काउंसिलिंग के दौरान मरीज़ के परिवार और केयरटेकर की अहम भूमिका होती है ।उनको भी काउंसिलिंग की जरुरत होती है जिससे मरीज़ के उपचार में मदद मिलती है।