NDTV Khabar

रवीश कुमार का प्राइम टाइम : लेफ़्टिनेंट जनरल को पब्लिक मारेगी, कहां की भाषा है?

 Share

लोकतंत्र सबसे पहले भाषा में समाप्त होता है. अगर लोकतंत्र की भाषा और उसकी मर्यादा बची होती तो कोई सेना में 40 साल रहने के बाद लेफ्टिनेंट जनरल के पद से रिटायर होने वाले अफसर को ये लिखने की हिमाकत नहीं करता कि पब्लिक मारेगी तो रोना मत. क्यों हमारी भाषा इस तरह की हो गयी है? और क्या ऐसी भाषा सहज और समान्य होती जा रही है? सरकार से सवाल करने वाले सेना के अफसरों के खिलाफ अभद्र भाषा का उपयोग हो रहा है? क्या वो लोकतंत्र का हिस्सा नहीं हैं? इस बात का आधार क्या है कि लेफ़्टिनेंट जनरल की बात से असहमत होने के बाद पब्लिक दौड़ा कर मारेगी? क्या जनता के पास अपना विवेक नहीं है?



Advertisement

 
 
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com