उत्तराखंड में मानव-वन्य जीव संघर्ष के आंकड़े, संरक्षण और जागरूकता की जरूरत

साल 2000 से लेकर सितंबर 2025 तक के आंकड़ों को देखें तो उत्तराखंड में मानव वन्य जीव संघर्ष में लेपर्ड, हाथी, बाघ, भालू, सांप, जंगली सूअर, बंदर /लंगूर ,मगरमच्छ, ततैया, मॉनिटर छिपकली, जैसे वन्यजीवों से मानव संघर्ष में 1256 इंसानों की मौत हुई है.

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  • उत्तराखंड में मानव वन्य जीव संघर्ष में 2000 से 2025 तक 1256 लोगों की मौत और 6433 लोग घायल हुए हैं
  • मानव और वन्यजीव सह-अस्तित्व का मतलब दोनों पक्षों की आवश्यकताओं और अधिकारों का संतुलित सम्मान है
  • जंगलों के सिकुड़ने और मानव बस्तियों के विस्तार से वन्य जीवों का आवास कम होने के कारण संघर्ष बढ़ा है
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देहरादून:

देशभर में 2 अक्टूबर से वन्य जीव सप्ताह हर जगह मनाया जा रहा है और इस बार वन्य जीव सप्ताह की थीम "मानव वन्य जीव सह अस्तित्व" है. मानव और वन्यजीव एक ही पर्यावरण में शांतिपूर्ण ढंग से रहते हैं, लेकिन यह अक्सर मानव-वन्यजीव संघर्ष का कारण बनता है, जिससे दोनों पक्षों को नुकसान होता है. उत्तराखंड में राज्य गठन से लेकर अब तक मानव वन्य जीव संघर्ष में अब तक 1256 इंसानों की मौत हुई है. इसके अलावा राज्य गठन से लेकर अब तक 6433 लोग घायल हुए हैं.

उत्तराखंड में होती हैं सबसे ज्यादा वन्य जीव संघर्ष की घटनाएं

उत्तराखंड में सबसे ज्यादा वन्य जीव संघर्ष की घटनाएं होती रही है. "मानव–वन्य जीव सह-अस्तित्व" का अर्थ है –मनुष्य और वन्य जीव (जंगली जानवर, पक्षी, अन्य प्राणी) एक-दूसरे के साथ इस प्रकार जीवन व्यतीत करें कि दोनों की आवश्यकताओं, अधिकारों और अस्तित्व को संतुलित तरीके से मान्यता मिले. यानी मनुष्य प्रकृति और जीव-जंतुओं का शोषण न करें, बल्कि उनके साथ ऐसा रिश्ता बनाए कि न तो वन्यजीवों का जीवन संकट में पड़े और न ही मनुष्य की बुनियादी ज़रूरतें.

क्या कहते हैं आंकडे़ं

साल 2000 से लेकर सितंबर 2025 तक के आंकड़ों को देखें तो उत्तराखंड में मानव वन्य जीव संघर्ष में लेपर्ड, हाथी, बाघ, भालू, सांप, जंगली सूअर, बंदर /लंगूर ,मगरमच्छ, ततैया, मॉनिटर छिपकली, जैसे वन्यजीवों से मानव संघर्ष में 1256 इंसानों की मौत हुई है.

इन जानवरों से 2025 तक घायल हुए 6433 लोग

इसमें लेपर्ड से 543, हाथियों के द्वारा 230, बाघ के द्वारा 105, भालू से 69, सांप से 260, जंगली सूअर से 29, मगरमच्छ से 9, सियार से एक, ततैया से 9 और मॉनिटर छिपकली से एक व्यक्ति की मौत हुई है. मानव वन्य जीव संघर्ष में साल 2000 से लेकर सितंबर 2025 तक घायल हुए इंसानों की संख्या लगभग 6433 है. 

इसका सबसे बड़ा कारण जगंलों का सिमटना

मानव वन्य जीव संघर्ष का सबसे बड़ा कारण जंगलों का सिमटता दयारा है यानी वन्यजीवों का जो घर है इसका दायरा काम होता जा रहा है. इंसान अपनी मानव बस्ती बढ़ाते जा रहे हैं. विकास के नाम पर तो कभी खेती के नाम पर या फिर कभी मानव बस्तियां बसाने के नाम पर जंगलों पर अंधाधुंध कटान हो रहा है. यही वजह है कि मानव वन्य जीव संघर्ष ज्यादा हो गया है. मानव वन्य जीव सह अस्तित्व के प्रमुख मुद्दे आर्थिक नुकसान, सुरक्षा जोखिम, भोजन और जल की कमी, संरक्षण और विकास में टकराव है जिसमें आर्थिक नुकसान में फसल और मवेशियों की क्षति होती है. साथ ही बुनियादी ढांचे को भी नुकसान होता है. वहीं वन्यजीवों के साथ संसाधनों के लिए हमेशा मानव और वन्यजीवों के बीच संघर्ष होता है. विशेष रूप से जल स्रोतों के लिए, जो मानव समाज और वन्यजीवों दोनों को प्रभावित करती है.

इसका समाधान जरूरी

अब ऐसे में मानव वन्य जीव सह अस्तित्व के समाधान में इसके लिए एक नीतिगत पहल होनी चाहिए जिसमें ग्राम पंचायत को सशक्त बनाना होगा, होने वाले नुकसान के लिए पुख्ता योजनाएं बनानी होंगी और ग्राम स्तर पर ही अंतर विभाग्य समितियां का गठन करना होगा. इसके अलावा प्रौद्योगिकी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें पूर्व चेतावनी प्रणाली यानी अर्ली मॉर्निंग सिस्टम को लगाया जा सकता है. खासकर यह इंसानी खेती और रेलवे ट्रैक पर कारगर सिद्ध होता है. इसके अलावा निगरानी के लिए ड्रोन और सामुदायिक जन जागरूकता के लिए हॉटलाइन नंबर्स का उपयोग भी किया जा सकता है.

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स्थानीय समुदायों को संरक्षण देना भी जरूरी

इसके अलावा समुदाय आधारित दृष्टिकोण भी रखना होगा यानी स्थानीय समुदायों को संरक्षण में शामिल करना और उनके पारंपरिक ज्ञान को महत्व देना. बुनियादी ढांचे का निर्माण भी पुख्ता किया जाना चाहिए. जानवरों को मानव बस्तियों से दूर रखने के लिए अवरोधों या फिर बाड़ो या सोलर फेंसिंग का निर्माण करना होगा. शहरों के विस्तार के कारण या फिर शहरों की प्लानिंग में पर्यावरण और वन्यजीवों पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखकर ही इसकी प्लानिंग करनी होगी और सबसे महत्वपूर्ण जन जागरूकता और शिक्षा मानव वन्य जीव अस्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण समाधान है. जिसमें लोगों को वन्यजीवों के महत्व और संघर्ष के समाधान के बारे में शिक्षित करना होगा चाहे वह स्कूल हो या फिर गांव.

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