- उत्तराखंड में पिछले कुछ वर्षों में भालुओं के हमले तेजी से बढ़े हैं, जिससे कई लोगों की मौत हुई है
- हिमालयी काले भालू 1500 से 3000 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाते हैं
- जलवायु परिवर्तन के कारण भालू सर्दियों में शीत निद्रा नहीं ले पा रहे हैं जिससे उनका व्यवहार आक्रामक हो गया है
उत्तराखंड में अक्सर मानव वन्य जीव संघर्ष की खबरें आती रही हैं जिसमें प्रमुख रूप से तेंदुए, बाघ और हाथी जैसे वन्यजीवों की खबर अक्सर आती रही हैं लेकिन पिछले कुछ समय से उत्तराखंड में भालुओं के हमले की खबरें आए दिन आ रही है. उत्तराखंड के ज्यादातर पर्वतीय क्षेत्रों में आये दिन भालुओं के हमले बढ़े हैं.
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 2081 भालू के हमले हो चुके हैं जिसमें 2 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए ओर लोगों की मौत भी हुई है. हिमालयी काले भालू भी 1500 मीटर से 3000 मीटर तक पाए जाते हैं. लगातार पिछले कुछ सालों में भालू के हमले बढे हैं. राज्य में 2020 में 10 लोगों की भालू के हमले से मौत हुई थी. साल 2021 में भालू के हमले में तेरा लोगों की मौत हुई थी. 2022 में 1 मौत, जबकि 2024 में तीन लोगों की भालू के हमले में मौत हुई थी. 2023 में किसी की मौत नहीं हुई थी. इसके अलावा साल 2025 में अब तक 4 से ज्यादा लोगों से भालू के हमले में मौत हुई.
वहीं साल 2020 में भालू के हमले में लगभग 99 लोग घायल हुए थे. 2021 में लोग घायल हुए 2022 में 57 लोग घायल हुए इसी तरह 2023 में 53 लोग घायल हुए थे. वहीं साल 2024 में 65 लोग घायल हुए. साल 2025 की बात करें तो अब तक 44 लोग घायल हो चुके हैं. सिर्फ इंसानों पर भालू ने हमला नहीं किया बल्कि मवेशियों पर भी भालू ने हमले किए जिसमें ज्यादातर गाय भैंस और बकरियां हैं जिन पर भालू ने हमला कर उन्हें मार डाला. हिमालयी ब्लैक बियर उत्तराखंड के तराई के क्षेत्रों और पहाड़ों में पाये जाते हैं. राज्य के पौड़ी, चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, केदारनाथ वन्यजीव अभयारण्य, बागेश्वर और पिथौरागढ़ वन प्रभाग में घटनाएं ज्यादा हुई हैं.
ये जानना जरूरी है कि आखिर यह भालू क्यों आक्रामक हो रहे हैं. इसके पीछे की वजह को पर्यावरणविद एसपी सती बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन उसका सबसे बड़ा कारण है क्योंकि तापमान लगातार बढ़ रहा हैं जिसकी वजह से हिमालयी काला भालू सर्दियों में सो नही पा रहे हैं यानी भालू सर्दियों में शीत निद्रा (हाइबरनेशन) में चले जाते हैं लेकिन काम बर्फबारी ने उनके व्यवहार में बदलाव लाया है. जिस समय इनका शीत निद्रा में जाना चाहिए उसे समय यह शिकार कर रहे हैं. खासकर मानवों पर उनके हमले ज्यादा दिख रहे हैं.
इसके अलावा एसपी सती बताते हैं कि अक्सर पहाड़ों पर खेतों में मंडावा खाने भालू आते थे लेकिन पहाड़ों के खेत बंजर हो गई है. लोगों ने खेती करना छोड़ दिया है और भालुओं को पर्याप्त फूड नहीं मिल पा रहा है क्योंकि भालू शाकाहारी भी होता है और मांसाहारी भी पर ऐसे में शाकाहारी खाना नहीं मिल पा रहा है. इसकी वजह से भालू का व्यवहार आक्रामक हो गया है. दूसरा उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में पाए जाने वाला भंगोरा फल भी अब कम हो गया. मुख्य रूप से 1000 से लेकर 3000 मीटर की ऊंचाई पर यह फल पाया जाता है. भंगोरा कम पाया इसलिए जा रहा क्योंकि चीड़ के पेड़ तेज बढ़ रहे है.
जलवायु परिवर्तन, भोजन की कमी के अलावा सबसे बड़ा कारण उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के कस्बों के आसपास खुले में कचरा फेंक जाना है इस कचरे में सब्जियां खाने-पीने की वस्तुएं और मांसाहारी दुकानों से मुर्गी बकरा के अवशेष होते हैं जिससे आकर्षित होकर भालू आसपास कसबे वाले इलाकों में ही घूमते फिरते नजर आ जाते हैं क्योंकि उनके लिए इस कचरे में भरपूर खाना होता है और इस खान की वजह से ही यह इंसानी बस्तियों के आसपास रहते हैं और मानव वन्य जीव संघर्ष ज्यादा बढ़ जाता है. इस तरह पहले कचरे में भालू अक्सर अपना भोजन ढूंढते हुए दिखे हैं.














