उत्तराखंड क्रांति दल के पूर्व केंद्रीय अध्यक्ष व पूर्व कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट का निधन हो गया. वह लंबे समय से बीमार थे दिवाकर भट्ट का देहरादून के निकट अस्पताल में इलाज चल रहा था. देर शाम को उन्होंने अपने आवास पर अंतिम सांस ली. सीएम धामी ने पूर्व कैबिनेट मंत्री दिवाकर भट्ट के निधन पर शोक व्यक्त किया. उन्होंने एक्स पर पोस्ट लिखते हुए कहा, "उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ आंदोलनकारी एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री श्री दिवाकर भट्ट जी के निधन का समाचार अत्यंत दुःखद है. राज्य निर्माण आंदोलन से लेकर जनसेवा के क्षेत्र में उनके द्वारा किए गए कार्य सदैव अविस्मरणीय हैं."
युवावस्था से ही राज्य आंदोलन से जुड़े
दिवाकर भट्ट युवावस्था से ही राज्य आंदोलन से जुड़ गए थे. राज्य आंदोलन के लिए वर्ष 1978 में दिल्ली रैली में वह उन चुनिंदा युवाओं में शामिल थे, जिन्होंने बदरीनाथ से दिल्ली पैदल यात्रा की थी. वह 1979 में गठित उत्तराखंड क्रांति दल के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे हैं. उनके तीखे तेवरों के कारण ही 1993 में हुए उक्रांद सम्मेलन में गांधीवादी नेता इंद्रमणि बडोनी ने उन्हें 'फील्ड मार्शल' की उपाधि दी थी.
देवप्रयाग विधानसभा सीट जीतकर पहुंचे विधानसभा
साल 2007 में टिहरी जिले की देवप्रयाग विधानसभा सीट से पहली बार चुनाव जीतकर दिवाकर भट्ट विधानसभा पहुंचे थे. दिवाकर भट्ट ने तत्कालीन भाजपा सरकार को समर्थन दिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी की सरकार में दिवाकर भट्ट को राजस्व मंत्री का पद भार मिला. मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी (सेनि) के मुख्यमंत्री कार्यकाल में जिस सख्त भू-कानून की बात होती है, उसे बनाने में दिवाकर भट्ट का भी अहम योगदान रहा है.
आंदोलन करते हुए गिरफ्तार
दिवाकर भट्ट ने साल 1988 में वन अधिनियम के चलते रूके हुए विकास कार्यों को लेकर भी आंदोलन किया, इसमें उनकी गिरफ्तारी भी हुई. साल 1994 में जब राज्य आंदोलन तेज हुआ तो वह एक प्रमुख चेहरा रहे. नवंबर 1995 में उन्होंने श्रीनगर के श्रीयंत्र टापू और फिर दिसंबर 1995 में टिहरी खैट पर्वत पर आमरण अनशन किया.
टिहरी जिले के बड़ियारगढ़ के सुपार गांव में साल 1946 में जन्मे दिवाकर भट्ट केवल नेता नहीं, एक विचार व चेतना भी थे. उत्तराखंड आंदोलन में उनका अडिग पहाड़ीपन, जो पहाड़ के हितों के लिए किसी भी कीमत पर झुकने को तैयार नहीं होती थी. केवल 19 वर्ष की अल्पायु में ही वे जनांदोलनों के अग्रिम मोर्चे पर आ गए. साल 1968 में ऋषिबल्लभ सुंदरियाल के नेतृत्व में दिल्ली के बोट क्लब पर आयोजित ऐतिहासिक रैली में उनकी भागीदारी उत्तराखंड राज्य की मांग की पहली गूंज थी.
राजनीति में उनकी सादगी की मिसाल
1972 में सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में हुए प्रदर्शन में भी उनकी भूमिका अहम रही. राजनीति में भी उनकी सादगी की मिसाल रही. साल 1982 से 1996 तक तीन बार कीर्तिनगर के ब्लाक प्रमुख रहे. एक बार जिला पंचायत सदस्य रहे.साल 1999 और 2017 में उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष भी रहे. साल 2012 का चुनाव उन्होंने भाजपा के चुनाव निशान पर लड़ा और चुनाव हारे. फिर साल 2017 में निर्दलीय चुनाव लड़े और मामूली अंतर से हार गए.














