धराली में अभी भी जारी है रेस्क्यू ऑपरेशन
- धराली में आए भयंकर सैलाब के बाद प्रशासन ने 68 लापता लोगों की सूची जारी की है.
- रेस्क्यू ऑपरेशन में सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और आईटीबीपी सक्रिय हैं और अभी भी मलबा हटाने का कार्य जारी है.
- लापता लोगों में नेपाली नागरिक, सेना के जवान, धराली और आसपास के क्षेत्र के लोग भी शामिल हैं.
धराली में आए सैलाब के बाद प्रशासन ने अब उन 68 लोगों की लिस्ट जारी की है जो इस आपदा के बाद से ही लापता हैं. इस लिस्ट में धराली के साथ-साथ दूसरे देश और राज्यों के लोग भी शामिल हैं. आपको बता दें कि हादसे वाली जगह पर अभी भी सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और आईटीबीपी का रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है. सेना मलबा हटाने के काम में दिन-रात एक करके लगी हुई है. प्रशासन के अनुसार इस रेस्क्यू ऑपरेशन के पूरा होने में अभी कुछ दिन का समय और लग सकता है. अभी भी धराली गांव का बड़ा हिस्सा मलबे के अंदर है. इन इलाकों से भी मलबा हाटने के लिए काम किया जा रहा है.
प्रशासन ने अभी तक जितने लापता लोगों की सूची जारी की है, उनमें 25 नेपाली नागरिक, सेना के नौ जवान,धराली गांव के आठ, आसपास के क्षेत्रों के पांच, टिहरी जिले का एक, बिहार के 13, उत्तर प्रदेश के छह, राजस्थान का एक शामिल हैं. इस सूची के जारी होने से पहले गढ़वाल मंडल के आयुक्त विनय शंकर पाण्डेय ने आपदा में एक व्यक्ति की मौत और 42 लोगों के लापता होने की पुष्टि की थी.हालांकि, उन्होंने 24 नेपाली मजदूरों के भी लापता होने की आशंका व्यक्त की थी लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि उनके बारे में संबंधित ठेकेदारों से अधिक विवरण नहीं मिल पा रहा है.
कहां से | कितने लापता |
नेपाली नागरिक | 25 |
बिहार के | 13 |
सेना के | 9 |
धराली गांव के | 8 |
यूपी के | 6 |
आसपास के क्षेत्र के | 5 |
राजस्थान का | 1 |
टिहरी जिले का | 1 |
पाण्डेय ने कहा था कि पहले लापता माने जा रहे पांच नेपाली मजदूर मोबाइल फोन नेटवर्क बहाल होने के बाद सुरक्षित पाए गए थे और हो सकता है कि ये भी सुरक्षित हों. इस संबंध में उन्होंने केदारनाथ आपदा का भी उदाहरण दिया था, जहां लापता बताए गए कई लोग प्रभावित क्षेत्र से वापस अपने घर पहुंच गए थे.
इस बीच, धराली में खराब मौसम में भी राहत, तलाश एवं बचाव अभियान जारी है. लगातार बारिश के बाद मंगलवार को मौसम साफ होते ही हेलीकॉप्टरों के माध्यम से प्रभावित क्षेत्र में खाने औऱ राहत सामग्री भेजी गई. अधिकारियों ने यहां बताया कि आपदा के बाद हर्षिल हेलीपैड के निकट भागीरथी नदी का जलप्रवाह रूकने से बनी अस्थाई झील को खोलने के प्रयास लगातार जारी हैं.
अधिकारियों ने बताया कि मौसम खुलते ही मातली हेलीपैड से हेलीकॉप्टरों से प्रभावित क्षेत्र के लिए खाद्य और राहत सामग्री की खेप भेजने का सिलसिला शुरू हो गया. अधिकारियों ने बताया कि चिन्यालीसौड़ हवाई पट्टी से भी हेलीकॉप्टरों के जरिये खाद्यान्न और ईंधन के साथ ही क्षतिग्रस्त सड़कों की मरम्मत के लिए सीमा सड़क संगठन के प्रयोग हेतु ‘वायरक्रेट्स' भी हर्षिल भेजी गई. उन्होंने बताया कि धराली गांव की दो गर्भवती महिलाओं को हेलीकॉप्टर के माध्यम से मातली हेलीपैड पहुंचाया गया, जहां से उन्हें उत्तरकाशी जिला अस्पताल भेजा गया.
मलबे में लापता लोगों की खोज का काम युद्धस्तर पर जारी है. यूएसडीएमए के अनुसार, राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) की विशेष इंजीनियरिंग टीम क्षेत्र में जीपीआर की मदद से काम कर रही है जबकि चीता हेलीकॉप्टरों की टीम द्वारा संपूर्ण क्षेत्र में लिडार सर्वेक्षण किया गया है.
जीपीआर एक भू-भौतिकीय विधि है, जो सतह के नीचे कीचड़ और पानी की मौजूदगी में भी रेडियो तरंगों के माध्यम से मानव उपस्थिति का पता लगा सकती है. इस साल फरवरी में तेलंगाना में एसएलबीसी सुरंग हादसे में फंसे लोगों का पता लगाने के लिए जीपीआर का इस्तेमाल किया गया था.
एनडीआरएफ के अनुसार, जीपीआर 50 मीटर गहराई तक मौजूद वस्तुओं का पता लगा सकता है. अधिकारियों के अनुसार, अभी निचले क्षेत्रों में जीपीआर से स्कैनिंग की गई है और ढाई से तीन मीटर की गहराई में अब तक 20 जगहें ऐसी मिली हैं जहां भवनों या उस जैसे अन्य ढांचों का पता चला है. उन्होंने कहा कि ऐसे में वहां किसी के जीवित या मृत मिलने की उम्मीद की जा सकती है.उन्होंने बताया कि जिंदगी के संकेत वाले स्थलों पर मशीनों का प्रयोग नहीं किया जा रहा है और उन जगहों की पहचान कर हाथ से प्रयोग किए जाने वाले औजारों से खुदाई की जा रही है.
अधिकारियों के अनुसार तलाश अभियान को और सुदृढ़ करने के लिए ‘रेस्क्यू रडार' को भी मौके पर उतार दिया गया है. इस उपकरण का प्रयोग कर रहे एरिका इंजीनियरिंग के एक तकनीकी अधिकारी के अनुसार, रेस्क्यू रडार भी रेडियो तरंगों पर काम करता है.एनडीआरएफ के अधिकारियों के अनुसार जब तक मलबे से भरे पूरे क्षेत्र को चिह्नित नहीं कर दिया जाता, तब तक जीपीआर और रेस्क्यू रडार जैसे उपकरणों का प्रयोग किया जाता रहेगा. हालांकि, प्रभावित क्षेत्र में मलबे में लापता लोगों के जीवित होने की संभावना समय बीतने के साथ और कम होती जा रही है.