गए तो बाजार था, लौटे तो श्‍मशान... धराली में फंसे केरल के लोगों की आपबीती

'जब हम 5 अगस्‍त की सुबह गंगोत्री के लिए जा रहे थे, तब हमने धराली में रुककर चाय नाश्‍ता किया था. लेकिन जब हम लौट रहे थे, तो वहां बाजार का नामोनिशान नहीं था. सबकुछ तबाह हो चुका था. इस जगह को पहचानना भी मुश्किल हो रहा था.'

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धराली के दर्द की कहानी
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  • केरल के 22 लोगों का समूह गंगोत्री दर्शन के लिए गया था, जो धराली में आई आपदा से बच निकला.
  • गंगोत्री से लौटते समय पुलिस ने लैंडस्लाइड के कारण आगे न जाने को कहा था और वहीं रोक दिया.
  • धराली में भारी भूस्खलन से पूरा गांव और बाजार तबाह हो गया, जिससे सैकड़ों लोग प्रभावित हुए.
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मातली:

Dharali Cloud Brust: केरल के कुछ भाग्‍यशाली लोग हैं, जो उत्‍तराखंड के धराली में आई प्राकृतिक आपदा से बाल-बाल बच गए. 22 लोगों का ग्रुप गंगोत्री दर्शन के लिए गया था. जब ये लोग जा रहे थे, तो धराली में जीवन था. एक बाजार था, जहां सैकड़ों लोग मौजूद थे, लेकिन जब ये लोग लौट रहे थे, तो ये जगह श्‍मशान बन चुकी थी. यहां सिर्फ तबाही के निशान थे. इन लोगों का मानना है कि मां गंगा ने इन्हें दूसरा जीवन दिया है. अगर ये लंच करने के लिए गंगोत्री में ना रुके होते, तो ये भी धराली में बह गए होते. इस यात्रा में मां गंगा के आशीर्वाद ने इन्हें बचाया, लेकिन जिन लोगों और गांव ने इन्हें खाना खिलाया, उनका नामोनिशान तक नहीं बचा उसका दुख जीवन भर इन्‍हें रहेगा. 

धराली में चाय पीने रुके थे...

मातली से बटवाड़ी के रास्‍ते में केरल से गंगोत्री दर्शन के लिए आए इस ग्रुप से एनडीटीवी ने बातचीत की. इन्‍हें आज ही धराली से रेस्‍क्‍यू कर मातली लाया गया है. इस ग्रुप के एक सदस्‍य रामचंद्र नायर ने बताया कि 5 अगस्‍त को सुबह ब्रेकफास्‍ट करने के 8 बजे हम निकले थे, तब मौसम सामान्‍य था. बारिश भी नहीं हो रही थी.  गंगोत्री पहुंचकर मां गंगा के दर्शन किये. वहां खाना खाया और दोपहर 2 बजे वहां से वापसी के लिए निकले. गंगोत्री से हम 10 किलोमीटर नीचे आए, तो पुलिस वालों ने हमारी गाड़ी को रोक लिया. उन्‍होंने बताया कि आगे लैंडस्‍लाइड हुआ है, बड़े-बड़े पत्‍थर सड़क पर आ गए हैं. इसलिए आपको अभी यहीं रुकना पड़ेगा. आगे से अगर पता चलता है कि रास्‍ता साफ है, तो हम आप लोगों को यहां से आगे जाने देंगे. इसके बाद हम गाड़ी को सड़क के साइड में करके वहीं रुक गए. हमारे जैसे काफी लोग वहां ऐसे ही रुके हुए थे. लगभग आधे घंटे बाद हमें पता चला कि धराली में एक पूरा का पूरा गांव और बाजार बह गया है. काफी नुकसान हुआ है. ये सुनकर हम सहम गए. 

उन्‍होंने कहा, 'पुलिसवालों ने हमें बताया कि धराली में 25-30 फीट मिट्टी सड़क पर आ गई है. रास्‍ता बिल्‍कुल बंद हो गया है, जिसे खुलने में काफी समय लग सकता है. हालांकि, उन्‍होंने बताया कि सरकार आपको यहां से रेस्‍क्‍यू करके लेकर जाएगी, घबराने की जरूरत नहीं है. 5 अगस्‍त को हम सब भैरो घाट पर रुके थे. अगले दिन 6 अगस्‍त को हमें पता चला कि धराली में बहुत बड़ी आपदा आई है. भैरो घाट पर भी बिजली, मोबाइल नेटवर्क कुछ नहीं था. हम किसी से संपर्क नहीं कर पा रहे थे. ऐसे में हमने वहां आर्मी कैंप में बात की. उन्‍होंने बताया कि फंसे हुए लोगों को एयरलिफ्ट करने की प्‍लानिंग की जा रही है.'  

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हम बहुत घबराए हुए थे!
 

ओमना रामचंद्र ने बताया, 'हम बहुत घबराए हुए थे और हमें अपने परिवार की भी चिंता हो रही थी. हमें पता था कि वो भी हमारे लिए परेशान हो रहे होंगे. ऐसे में हमें आईटीबीपी ने काफी मदद की. आईटीबीपी के कैंप में जाकर हमें वाईफाई की सुविधा मिली और फिर हमने अपने परिवार से बात की. हमने उन्‍हें बताया हम सुरक्षित हैं. आईटीबीपी के कैंप के अलावा वहां हमारे पास दूसरों से संपर्क करने का कोई जरिया नहीं था. इसके बाद जब हम उत्‍तरकाशी में एयरलिफ्ट होकर आए, तब हमें मोबाइल नेटवर्क मिला और हम परिवार से बात कर पाए. '

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आईटीबीपी के जवानों ने बहुत मदद की

ओमना रामचंद्र ने बताया कि धराली तक हमें आईटीबीपी के जवान एक ट्रक में लेकर आए थे. इसके बाद लगभग आधा किलोमीटर हमें पैदल चलना पड़ा. ये वहीं एरिया था, जहां पूरा गांव नीचे दब गया था. सेना के जवानों ने इस दौरान हमारी काफी मदद की. कुछ लोग ऐसे भी थे, जो चल नहीं पा रहे थे, उन्‍हें स्‍ट्रेचर पर लाया गया. 
हर्षिल पहुंचने के बाद हमें एक एंबुलेंस से हेलीपैड तक पहुंचाया गया, जहां से एयरलिफ्ट कर हमें सुरक्षित नीचे लाया गया है.

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अगर खाना खाने नहीं रुकते तो...

ओमना रामचंद्र ने बताया कि जब हम 5 अगस्‍त की सुबह गंगोत्री के लिए जा रहे थे, तब हमने धराली में रुककर चाय नाश्‍ता किया था. लेकिन जब हम लौट रहे थे, तो वहां बाजार का नामोनिशान नहीं था. सबकुछ तबाह हो चुका था. इस जगह को पहचानना भी मुश्किल हो रहा था. ये जगह बेहद खौफनाक लग रही थी. अब हम ये सोच रहे हैं कि अगर हम गंगोत्री पर लंच करने नहीं रुकते तो शायद हम भी धराली की आपदा में बह सकते थे. मां गंगा ने हमें बचा लिया.  

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रामचंद्र नायर ने बताया कि हम गंगोत्री पर लंच करने के लिए रुक गए थे. हम लगभग 2 बजे गंगोत्री से निकले. लगभग 10 किलोमीटर नीचे भैरो घाट पर हमें रोक लिया. यहां से लगभग 10 किलोमीटर नीचे ही धराली है. अगर हम खाना खाने के लिए नहीं रुकते और गंगोत्री से जल्‍दी निकल जाते, तो हम भी आपदा का शिकार हो सकते थे. 

(मीनाक्षी कंडवाल की रिपोर्ट)

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