देहरादून और टिहरी जिले के बॉर्डर पर बसे चिफलटी गांव को चार साल से एक पुल का इंतजार

मॉनसून सीजन में न सिर्फ चिफलटी गांव के ग्रामीण बल्कि 6 ग्राम सभा के लोग 3 महीने के लिए कैद हो जाते हैं, क्योंकि नदी पर कोई पक्का पुल नहीं है.

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देहरादून और टिहरी जिले के बॉर्डर पर चिफलटी गांव 4 साल से इस उम्मीद पर बैठा है कि कभी इस गांव के लिए पुल का निर्माण पूरा हो जाएगा. पर इन गांव वालों की किस्मत ऐसी है कि पुल के लिए टेंडर भी हुआ, बजट भी रिलीज हुआ, पुल का काम भी शुरू हुआ, लेकिन वह काम 4 साल होने को है, पूरा नहीं हो पाया. चिफलटी गांव के अलावा 6 ग्राम सभाएं और 14 राजस्व गांव के कुल करीब 3 हजार ग्रामीण इस पुल के नहीं बनने से प्रभावित हैं. हर साल जब मानसून में नदी उफान पर होती है, तब इस पुल के बनने की याद शासन प्रशासन को आती है. गांव वाले शासन और प्रशासन को पत्र लिखकर थक गए हैं, लेकिन पुल का निर्माण पूरा ही नहीं हो पा रहा है. अब गांव वालों के लिए एक ट्रॉली पुल भी बनाया जा रहा है, लेकिन वह भी निर्माण अधीन है.

उत्तराखंड में मानसून सीजन में तमाम नदियां तूफान पर हैं तो चिफलटी नदी में भी बहुत ज्यादा पानी है. हालत ऐसी है कि गांव वालों को नदी पार करने के लिए या तो लकड़ी के पुल या फिर पानी के बीच से निकलना पड़ रहा है.  कुछ दिन पहले चिफलटी नदी में पानी बहुत ज्यादा था तो महिलाओं-बच्चों और अन्य लोगों को नदी पार करना मुश्किल हो गया था. फिर JCB मशीन को पुल बनाकर नदी पार कर रहे थे. 

करीब एक करोड़ 93 लाख की लागत से 48 मीटर लंबा पुल बनाना था. PMGSY के तहत इस नदी पर पुल बनाया जाना था. इसका टेंडर भी हुआ और काम भी शुरू हुआ. पुल बनाने के लिए 1 जनवरी 2022 से काम शुरू होना था और 7 जुलाई 2022 पूरा, लेकिन जुलाई 2025 तक पुल नहीं बन पाया. फिर पुल का बजट बढ़ाया गया. साल 2025 में पौने 3 करोड़ और स्वीकृत हुए.

मॉनसून सीजन में न सिर्फ चिफलटी गांव के ग्रामीण बल्कि 6 ग्राम सभा के लोग 3 महीने के लिए कैद हो जाते हैं, क्योंकि नदी पर कोई पक्का पुल नहीं है. किसानों के उत्पाद बाजार तक नहीं पहुंच रहे हैं. बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं तो बीमार भी घरों में ही रहने पर मजबूर हैं. गांव के ग्रामीण विक्रम सिंह का कहना है कि उनको समझ नहीं आता कि मानसून सीजन में ही इस पुल का काम क्यों किया जाता है और मानसून सीजन से पहले क्या वजह है कि इस पुल का काम पूरा नहीं हो पाता है.

गांव के ग्रामीण ज्ञान सिंह का कहना है कि इस पुल के नहीं बनने के कारण सब्जियां और दूध बाजार तक नहीं पहुंच पा रहा है.

सुशील कुमार और अजय सिंह कहते हैं कि बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं. अगर कोई बीमार हो जाए तो वह घर में ही कैद होने पर मजबूर है. काम धंधा तो बिल्कुल ठप हो गया है. 

गांव में मौजूद राजकीय प्राथमिक विद्यालय है, जिसमें एक कक्षा से 5 कक्षा तक के छात्र पढ़ते हैं, लेकिन जब बारिश ज्यादा हो जाती है तो स्कूल में छात्र और छात्राएं नहीं पहुंचते हैं. स्कूल की टीचर सुनीता थपलियाल का कहना है कि जब ज्यादा बारिश होती है तो स्कूल जाने के लिए नदी के बीच से जाना पड़ता है. कभी-कभी तो मानव श्रृंखला बनाकर ही नदी को पार करना पड़ता है. सुनीता थपलियाल का कहना है कि एक बार तो नदी पार करते हुए उनका पैर फिसला और वह नदी में बह गईं, लेकिन गांव वालों ने तुरंत उनको नदी से बाहर निकाला. 

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स्कूल के छात्र सचिन और अंशिका बताते हैं कि उनके गांव में पुल नहीं है तो ऐसे में उनके माता-पिता ही उनको अपने कंधे पर उठकर नदी पर करवाते हैं. कभी-कभी तो उनके कपड़े और स्कूल बैग भी पानी से भीग जाते हैं. 

स्कूल की आंगनवाड़ी वर्कर उषा कहती है कि वह अपने चार महीने के बच्चे को लेकर गांव में ही रह रही हैं, क्योंकि पानी ज्यादा हो जाता है तो ऐसे में वह पानी पार नहीं कर सकती हैं, इसलिए 4 महीने बरसात के वह गांव में ही रहती हैं. 

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