जब मुस्कुराईं वो जिंदगियां जो वर्षों से चुप थी...वृंदावन की विधवा माताओं ने दीयों संग मनाई उम्मीदों की दीवाली

वृंदावन के गोपीनाथ जी मंदिर में विधवा माताओं ने दीयों और भजनों के साथ दिवाली मनाई. सुलभ इंटरनेशनल की पहल से इन माताओं की ज़िंदगी में लौटी है मुस्कान और आत्मसम्मान की रोशनी.

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  • वृंदावन के गोपीनाथ जी मंदिर में विधवा माताओं ने दीपावली भजन-कीर्तन और दीप जलाकर मनाई
  • विधवाएं जो पहले तिरस्कार झेलती थीं, अब दीपावली में आत्मसम्मान और उम्मीद के साथ त्योहार मना रही हैं
  • सुलभ इंटरनेशनल संस्था ने 2012 से विधवाओं को सामाजिक सम्मान और उत्सवों में भागीदारी का अवसर प्रदान किया है
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वृंदावन:

वृंदावन की पवित्र गलियों में इस बार दीपावली कुछ खास है. दीयों की रोशनी सिर्फ़ मंदिरों या गलियों को नहीं, बल्कि उन ज़िंदगियों को भी रौशन कर रही थी जो कभी अंधेरे में डूबी थीं. गोपीनाथ जी मंदिर में विधवा माताओं ने भजन-कीर्तन करते हुए, दीप जलाकर, और एक-दूसरे को मिठाई खिलाकर ऐसी दिवाली मनाई जिसने हर दिल को छू लिया. जिन महिलाओं ने अपने पतियों को खोने के बाद समाज से तिरस्कार झेला, जिनकी ज़िंदगी बेरंग थी वही माताएं आज दीयों की लौ में उम्मीद और आत्मसम्मान का उजाला जगाया.

वृंदावन के गोपीनाथ जी मंदिर में बुधवार को एक अनोखा दीपोत्सव देखने को मिला. सैकड़ों विधवा और वृद्ध माताएं, जो कभी अपनों से ठुकराई गई थीं, आज भजनों की धुन पर नाचती-गाती नज़र आईं. हाथों में दीए, चेहरे पर मुस्कान देखने वाली थी. 

सालों से समाज के हाशिये पर जी रही ये महिलाएं अब खुद अपनी खुशी का कारण बन रही हैं. कभी जो मंदिरों की सीढ़ियों पर भीख मांगकर जीवन बिताती थीं, अब वही महिलाएं त्योहारों में शामिल होकर दुनिया को संदेश दे रही हैं कि ज़िंदगी का रंग कोई छीन नहीं सकता.

सुलभ इंटरनेशनल विधवाओं के लिए कर रहा है काम

सुलभ इंटरनेशनल संस्था ने 2012 से इन माताओं के जीवन को नया रास्ता दिया है. संस्था की कार्यकारी संयोजिका नित्या पाठक ने बताया कि “हम इन माताओं को केवल सहारा नहीं देते, बल्कि उन्हें ये एहसास दिलाते हैं कि वे समाज का हिस्सा हैं.” हर साल दीपावली, होली और रक्षाबंधन जैसे त्योहार इन माताओं के साथ बड़े उत्साह से मनाए जाते हैं.

इस बार दीपावली पर देश-विदेश से आए श्रद्धालुओं ने भी इन माताओं के साथ दीप जलाए, भजन गाए, और मिठाइयां बांटीं. हर दीए की लौ में इनके अधूरे सपनों की रोशनी थी. वृंदावन की गलियों में इस बार सिर्फ़ घी के दीप नहीं, बल्कि उम्मीदें भी जगमगा रही थीं.

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