SC/ST एक्ट का दुरुपयोग, महिला का इस्तेमाल, यूपी की अदालत ने वकील को सुनाई 12 साल की सजा 

उत्तर प्रदेश के लखनऊ की एक अदालत ने एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग को लेकर एक वकील को 12 साल के जेल और 45 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई है.

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लखनऊ:

उत्तर प्रदेश की एक अदालत ने एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग पर एक वकील को कड़ी सजा सुनाई है.अदालत ने वकील पर जुर्माना भी लगाया है. इस वकील ने इस कानून का दुरुपयोग कर महिला के माध्यम से दुराचार और अन्य आरोपों के फर्जी मुकदमे दर्ज करवाए थे. इस वकील पर एससी-एसटी एक्ट में पीड़ित को मिलने वाली धनराशि हड़पने का दोष साबित हुआ है. अदालत ने लखनऊ पुलिस आयुक्त को आदेश जारी कर कहा है कि रेप जैसे अपराध में एफआईआर दर्ज करने से पहले यह भी देखा जाए कि विपक्षी के विरुद्ध ऐसे ही कितने मामलों में एफआईआर दर्ज कराई गई है. पिछले सप्ताह भी एससी/एसटी एक्ट के दुरुपयोग के मामले में अदालत ने आरोपी को सजा सुनाई थी. दोषी ठहराया गया वकील इसी तरह के एक मामले में जेल की सजा काट रहा है.

लखनऊ की अदालत ने सुनाया फैसला

यह फैसला विशेष न्यायाधीश (एससी/एसटी एक्ट) विवेकानंद शरण त्रिपाठी की अदालत ने सुनाया. लखनऊ के अधिवक्ता परमानंद गुप्ता को फर्जी मुकदमा दर्ज कराने के मामले में 12 साल की सजा और 45 हजार रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई हैं. ये सजा उसे तीन अलग-अलग धाराओं में सुनाई गई हैं.ये सभी सजाएं अलग-अलग चलेंगी.सजा सुनाते हुए अदालत ने टिप्पणी की है कि यह मुकदमा सत्य की खोज की एक यात्रा थी, जिसमें यह स्पष्ट हुआ कि पूरी कहानी काल्पनिक थी और अभियुक्तों व कथित पीड़िता को एक शातिर वकील ने कठपुतली की तरह इस्तेमाल किया. 

यह मामला लखनऊ के चिनहट पुलिस थाने का है. यह मुकदमा 2023 में पूजा रावत दर्ज कराया था. रावत का आरोप था कि विपिन यादव, राम गोपाल यादव, मोहम्मद तासुक और भागीरथ पंडित ने उसके साथ मारपीट, छेड़छाड़ और जातिसूचक गालियां दी गैं.इस शिकायत पर पलिस ने धारा 406, 354, 504, 506 भादंसं और धारा 3(2)5ए एससी/एसटी एक्ट में दर्ज किया था.

सुनवाई के दौरान जब पीड़िता खुद अदालत में पेश हुई तो उसने चौंकाने वाला खुलासा किया. उसने कहा,''मेरे साथ कोई ऐसी घटना नहीं हुई थी. अधिवक्ता परमानंद गुप्ता ने मेरे दस्तावेज लेकर उनका दुरुपयोग करते हुए यह फर्जी मुकदमा दर्ज कराया था.''

अदालत ने वकील पर सख्त टिप्पणी

अदालत ने कहा कि वकील परमानंद गुप्ता ने न केवल निर्दोष लोगों को फंसाने का षड्यंत्र किया, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को भी कलंकित किया. अदालत ने कहा कि वादिनी और अभियुक्त दोनों ही इस मामले में कठपुतलियां थे. असली सूत्रधार वकील था, जिसने एससी/एसटी एक्ट की भावना को तोड़-मरोड़ कर झूठा मुकदमा गढ़ा. 
कोर्ट का सख्त संदेश- फर्जी मुकदमों पर लगेगा अंकुश

न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि फर्जी एफआईआर दर्ज कराने वालों पर सख्त कार्रवाई करे. इस तरह के मामलों में राहत राशि केवल आरोप पत्र दाखिल होने के बाद ही दी जाए, ताकि एक्ट का दुरुपयोग रोका जा सके.अदालत ने जिलाधिकारी लखनऊ को आदेश दिया है कि पूजा रावत को दी गई 75 हजार की राहत राशि परमानंद गुप्ता से वसूल की जाए. इसके साथ ही अदालत ने लखनऊ पुलिस को यह भी आदेश दिया है कि एससी-एसटी एक्ट में मुकदमा दर्ज करते समय इस बात का भी उल्लेख करें कि आरोप लगाने वाले ने इस तरह के कितने मामले पहले किसी और या आरोपियों पर दर्ज करवाए हैं.

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क्या वकील की वकालत पर लगेगी पाबंदी

इसके पहले एससी/एसटी कोर्ट ने 19 अगस्त को एक अन्य मामले में एडवोकेट परमानंद गुप्ता को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने कहा था कि अधिवक्ता परमानंद गुप्ता जैसे लोगों से न्यायपालिका की साख को नुकसान पहुंचते हैं. इसलिए निर्णय की प्रति बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश, इलाहाबाद को भेजी गई है, ताकि उनकी वकालत पर प्रतिबंध लगाया जा सके.

न्यायालय ने वादिनी पूजा रावत को चेतावनी दी कि यदि भविष्य में वह झूठे मुकदमे दर्ज कराकर एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग करती है, तो उसके खिलाफ भी कठोर कार्रवाई की जाएगी.दरअसल परमानंद गुप्त ने पूजा रावत के साथ मिलकर इस तरह के 11 से अधिक मामले दर्ज कराए गए हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने परमानंद गुप्त के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश दिए हैं. 

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