उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट (Karhal Assembly Seat) अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के सांसद बनने के बाद खाली हुई है. 2022 में अखिलेश यादव करहल से विधायक चुने गए थे, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज से सांसद बने और फिर उन्होंने करहल विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया. यह सीट अब समाजवादी पार्टी के लिए अखिलेश यादव का गढ़ बचाने वाली सबसे जरूरी सीट बन गई है. बीजेपी के लिए भी यह सीट बेहद अहम है. इस सीट को जीतकर बीजेपी लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के कारण बिगड़े माहौल को ठीक करने के लिए जोर आजमाइश कर रही है.
उत्तर प्रदेश में विधानसभा की दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं. अखिलेश यादव ने 2022 में करहल सीट को बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को हराकर जीती थी. अखिलेश 2019 में आजमगढ़ से सांसद बने थे, लेकिन 2022 में उन्होंने लखनऊ की राजनीति करने के लिए अपने गढ़ कहे जाने वाले मैनपुरी जिले की करहल सीट को चुना था.
क्या कहता है करहल का जातीय गणित?
करहल विधानसभा सीट पर कुल वोटर्स की संख्या 3,75,000 है. जातीय समीकरण की बात करें तो करहल में 1,30,000 यादव हैं. वहीं अनुमान के मुताबिक इस सीट पर अनुसूचित जाति के 60,000 मतदाता भी हैं. इसके साथ ही 50,000 शाक्य, 30,000 ठाकुर; 30,000 पाल/ बघेल, 25,000 मुस्लिम, 20,000 लोधी, 20,000 ब्राह्मण और 15,000 बनिया समाज के मतदाता हैं.
तेज प्रताप यादव पर दांव लगा सकती है सपा
बदली राजनीतिक परिस्थितियों में समाजवादी पार्टी अखिलेश यादव के उत्तराधिकारी के तौर पर तेज प्रताप यादव को टिकट दे सकती है. तेज प्रताप समाजवादी पार्टी के मुखिया के परिवार से आते हैं और सांसद भी रह चुके हैं. साथ ही तेज प्रताप लालू यादव के दामाद हैं. अगर तेज प्रताप को मौका नहीं मिलता है तो सपा पूर्व एमएलसी अरविंद यादव को भी उम्मीदवार बना सकती है.
चौंका सकता है भाजपा उम्मीदवार का नाम
बीजेपी ने 2022 में अखिलेश यादव के सामने केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल को मैदान में उतारा था. हालांकि इस उपचुनाव में अखिलेश यादव नहीं है, इसलिए एसपी सिंह बघेल के चुनाव लड़ने की गुंजाइश ना के बराबर है. ऐसे में बीजेपी अनुजेश प्रताप सिंह या संजीव यादव को प्रत्याशी बना सकती है. साथ ही बीजेपी करहल जीतकर माहौल बदलने की कोशिश में कोई चौंकाने वाला नाम भी उम्मीदवार के तौर पर सामने कर सकती है.
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