- यूपी के प्रतापगढ़ जिले के राजा भैया को महाराष्ट्र से एक दुर्लभ और बेशकीमती मारवाड़ी घोड़ा उपहार में मिला है
- इस मारवाड़ी घोड़े का नाम राजा भैया ने “विजयराज” रखा है और इसका भव्य स्वागत राजभवन में किया गया
- विजयराज घोड़े का पासपोर्ट और डीएनए रिपोर्ट मौजूद है, जिसमें उसकी नस्ल और पूर्व पीढ़ियों का रिकॉर्ड दर्ज है
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की कुंडा रियासत के राजा और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया एक बार फिर अपनी शाही जीवनशैली को लेकर चर्चा में हैं. इस बार उनके अस्तबल की शान बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र से एक बेहद बेशकीमती और दुर्लभ मारवाड़ी घोड़ा पहुंचा है, जिसकी कीमत करीब डेढ़ करोड़ रुपये बताई जा रही है. जानकारी के अनुसार, यह घोड़ा राजा भैया को महाराष्ट्र के उनके एक करीबी मित्र ने उपहार स्वरूप भेंट किया है. छत्रपति शिवाजी महाराज की धरती से अवध की पावन भूमि बेंती स्थित राजभवन पहुंचने पर इस अश्व का भव्य स्वागत किया गया. परंपरा के अनुसार, पूजा-अर्चना के बाद इसे अस्तबल में प्रवेश कराया गया. राजा भैया ने खुद इस घोड़े का नाम “विजयराज” रखा है.
पासपोर्ट और DNA रिपोर्ट है इसकी पहचान
‘विजयराज' कोई आम घोड़ा नहीं है, बल्कि इसकी अपनी एक पुख्ता कानूनी पहचान है. इस घोड़े का अपना पासपोर्ट बना हुआ है, जिसमें इसकी नस्ल, कद-काठी और रंग की पूरी जानकारी दर्ज है. पासपोर्ट में घोड़े के माता-पिता और पिछली तीन पीढ़ियों तक का पूरा रिकॉर्ड मौजूद है. मारवाड़ी नस्ल की शुद्धता को प्रमाणित करने के लिए इसकी डीएनए (DNA) रिपोर्ट भी साथ दी गई है.
क्यों खास है मारवाड़ी नस्ल?
मारवाड़ी नस्ल के घोड़े अपनी बुद्धिमत्ता और वफादारी के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं. ‘विजयराज' की विशेषताएं इसे दूसरों से अलग बनाती हैं. मजबूत कद-काठी और चमकदार शरीर. अंग्रेजी के 'V' अक्षर की तरह अंदर की ओर मुड़े हुए कान, जो इस नस्ल की सबसे बड़ी पहचान हैं. मोर जैसी घुमावदार और लंबी गर्दन. इस नस्ल के घोड़े देश-विदेश की रेसिंग और शो प्रतियोगिताओं में करोड़ों की बोलियों पर बिकते हैं.
राजा भैया का बढ़ता ‘अश्व दल'
राजा भैया को शुरू से ही घुड़सवारी, महंगी गाड़ियों और विमान उड़ाने का शौक रहा है. ‘विजयराज' के आने के बाद उनके अस्तबल में अब कुल घोड़ों की संख्या 20 हो गई है. जैसे ही यह खबर फैली, बेंती राजभवन में इस शानदार घोड़े को देखने के लिए स्थानीय लोगों का तांता लग गया. राजा भैया खुद भी अस्तबल में घोड़े को दुलारते और उसकी देखभाल का निर्देश देते नजर आए.














