गुरुजी पंडित छन्नूलाल मिश्रा की कहानी, एक रिपोर्टर की जुबानी

Pandit Chhannulal Mishra Passes Away: पंडित छन्नूलाल मिश्रा का 89 की उम्र में निधन हो गया है. पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित जी के सोहर और ठुमरी का दीवाना पूरा जमाना था. पंडित जी वाराणसी लोकसभा सीट से पीएम नरेंद्र मोदी के प्रस्तावकों में भी रहे हैं.

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छन्नूलाल मिश्रा
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  • मशहूर ठुमरी गायक छन्नूलाल मिश्रा का 89 की उम्र में निधन
  • वाराणसी लोकसभा सीट पर पीएम नरेंद्र मोदी के प्रस्तावक भी रहे थे पंडित जी
  • पंडित छन्नूलाल मिश्रा को पद्म विभूषण सम्मान मिल चुका था
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वाराणसी:

गुरुजी, एक गाना सुना दीजिए ना. कौन सा गाना सुनबा बचवा? ये संवाद कुछ साल पहले का है जब मैं कभी कभी किसी तीज त्यौहार के मौके पर पंडित जी से दो चार गाने रिकॉर्ड कराने के लिए मैं उनके घर जाता करता था. रिकॉर्डिंग खत्म होती तो थोड़ी बातचीत शुरू हो जाती. उसके बाद शुरू होता था फरमाइशों का दौर. उसके बाद कभी सोहर, तो कभी ठुमरी तो कभी मसाने में होली की फरमाइश. गुरुजी कम से काम तीन चार गाने को सुना ही दिया करते थे.

काफी सहज थे पंडित जी
पंडित छन्नूलाल जी इतने सहज थे कि उनसे मिलना किसी के लिए भी मुश्किल नहीं था. मैंने छन्नूलाल जी की सहजता को देख और महसूस किया है. काशी के सिद्धगिरि बाग का वो गली वाला घर और उस घर के ग्राउंड फ्लोर पर वो 8x8 का वो छोटा सा कमरा गुरुजी का अड्डा था. कोई भी, कभी भी जाकर गुरुजी से मिल सकता था. मैंने तो ना जाने कितनी बार उस छोटे से कमरे में गुरुजी से अपनी पसंद के गाने सुने.

'पसंद का गाना सुनता था'
गुरुजी और पंडित जी, ये दो शब्द छन्नूलाल जी के संबोधन के लिए इस्तेमाल किए जाते थे. हम भी उनके घर पहुंचते तो हाल चाल होता. फिर दफ़्तर की डिमांड पर कुछ गाने रिकॉर्ड करते. उसके बाद गुरुजी से कहते कि अब हमारी पसंद का कुछ सुना दीजिए. घर पर गुरुजी भोजपुरी में ही बात करते थे. बात बात में गुरुजी की गीत संगीत की विधा पर भी कई बातें समझा देते थे.

कमाल का था गायन 
हाथों में हारमोनियम लेकर कभी भोलेनाथ शिव तो कभी भगवान राम तो कभी केवट का महिमामंडन करते छन्नूलाल जी जब उस कमरे में गाना सुनाते तो यकीन मानिए, कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए. माहौल ऐसा बन जाता करता था कि लगता था बस गुरुजी गीत सुनाते जायें और हम सुनते जायें. धुन में बोली और इलाक़े का सर्वेश उनकी विधा को सबसे अलग बनाती थी.

छन्नूलाल और उनके सोहर 
काशी की मसान वाली होली हो और छन्नूलाल मिश्रा का गीत ना बजे, ऐसा नहीं हो सकता. काशी में किसी के घर बच्चा पैदा हो और छन्नूलाल जी का सोहर ना बजे, ये भी लगभग असंभव सा है. काशी में गीत संगीत का ज़िक्र हो और छन्नूलाल जी के ठुमरी की बात ना हो, ये भी संभव नहीं लगता. दशकों तक काशी से गीत संगीत के ज़रिए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले छन्नूलाल मिश्र जी का व्यक्तित्व कुछ अनूठा था. आज उनका शरीर भले खत्म हो गया लेकिन उनकी गायकी अमर रहेगी, इसमें कोई शक नहीं है.
 

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