- यूपी में SIR के काम में लगे एक BLO सर्वेश सिंह ने काम के दबाव के कारण आत्महत्या की है, जिससे चिंता बढ़ी है
- SIR का कार्य नवंबर से दिसंबर तक था, लेकिन ट्रेनिंग देर से मिली और समय सीमा बढ़ाकर 11 दिसंबर कर दी गई है
- BLO को भारी काम का दबाव झेलना पड़ता है, जिसमें सुबह जल्दी उठकर ऑनलाइन और ऑफलाइन फॉर्म भरने होते हैं
मुरादाबाद में SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) के काम में लगे एक BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) ने अपनी जान दे दी. भोजपुर थाना क्षेत्र के बेहड़ी गांव के रहने वाले सर्वेश सिंह ने काम के दबाव का आरोप लगाते हुए जान देने से पहले वीडियो भी रिकॉर्ड किया था, जिसमें वह रोते हुए मां से उसके बच्चों का ख्याल रखने की बात कर रहे हैं. यह पहला ऐसा मौका नहीं है, जिसमें किसी बीएलओ ने सुसाइड किया हो. इससे पहले भी मप्र और राजस्थान में भी बीएलओ ने सुसाइड किया है. कुछ ने काम के दबाव के चलते इस्तीफा तक दे दिया. ऐसे में एनडीटीवी ने यूपी के बुलंदशहर में आंगनवाड़ी बीएलओ से जाना कि काम के दौरान उन्हें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है.
यूपी के बुलंदशहर में एनडीटीवी ने आंगनवाड़ी बीएलओ से जाना हाल
पहले SIR खत्म करने की समयसीमा चार दिसंबर थी. लेकिन अब चुनाव आयोग ने समय सीमा बढ़ाकर 11 दिसंबर तक कर दी है. SIR के काम में नए वोटरों को जोड़ना, गलत जानकारियों का ठीक करना और फर्जी और अयोग्य नामों को सूची से हटाना है.
न ठीक से ट्रेनिंग मिली, न समय से काम शुरू हुआ
SIR का काम आधिकारिक तौर पर 4 नवंबर से 4 दिसंबर तक खत्म होना था, लेकिन समय सीमा बढ़ाकर 11 दिसंबर कर दी गई है. आंगनवाड़ी BLO ने बताया कि उन्हें फॉर्म 8 नवंबर को दिए गए, जिससे उनके पास काम करने के लिए दिन कम हो गए. BLO ने बताया कि SIR को 4 नवंबर से शुरू होना था, लेकिन ट्रेनिंग ही 8 नवंबर को दी गई. इस ट्रेनिंग में केवल बेसिक जानकारियां सिखाई गईं- जैसे ऐप डाउनलोड करना, ऑनलाइन फॉर्म भरना और सब्मिट करना. 2009 से BLO का काम कर रही एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता ने बताया कि इस बार SIR की प्रक्रिया एकदम अलग है. पर्याप्त ट्रेनिंग न मिलने के कारण, उन्हें खुद से सीखने के लिए यूट्यूब वीडियो, स्कूल के साथी और अन्य BLO की मदद लेनी पड़ी.
16 घंटे का काम और बेतहाशा दबाव
स्नातक पास BLO को 1,085 वोटरों का जिम्मा दिया गया है. वह बताती हैं कि ऑफलाइन काम 100% और ऑनलाइन फॉर्म 70% पूरा हो चुका है. BLO ने बताया कि वह सुबह 3-4 बजे उठकर 10 बजे तक ऑनलाइन फॉर्म अपलोड करती है. इसके बाद पूरा दिन गांव में फिजिकल फॉर्म इकट्ठा और बांटने का काम करती है. काम का दबाव इतना ज्यादा है कि कई बार घर में खाना भी नहीं बन पाता, जिसके लिए परिवार मदद करता है.
अफसर डांट लगाते हैं, दबाव बनाते हैं
BLO ने प्रशासन के भारी दबाव की बात स्वीकारी. उन्होंने बताया कि हर दिन मॉनिटरिंग हो रही है और डेली टारगेट पूरा न होने पर डांट भी लगाई जाती है. दबाव झेलने के लिए उन्हें दिन में दो बार दवा लेनी पड़ती है.
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में काम के दबाव में बीएलओ के सुसाइड की घटनाओं पर उन्होंने कहा कि काम का प्रेशर है, लेकिन जान देना गलत है और परिवार के बारे में सोचना चाहिए. एक अन्य स्कूल शिक्षक BLO का कहना है कि SIR के लिए बेहद कम समय मिला है, ट्रेनिंग देर से शुरू हुई और काम बहुत ज्यादा है. एक ही घर में 8 से 10 बार जाना होता है क्योंकि लोग हमेशा घर पर नहीं मिलते. दोनों BLO मानते हैं कि SIR का काम 2 से 3 महीने में पूरा हो सकता था, खासकर जब यूपी में चुनाव 2027 में हैं.
₹500 का इंसेंटिव: जेब से खर्च ज्यादा
सबसे बड़ा सवाल है कि इस भारी-भरकम काम के बदले BLO को क्या मिल रहा है. आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को SIR के लिए सिर्फ ₹500 मिलते हैं. उन्होंने बताया कि केंद्र से ₹4,500 और यूपी सरकार से ₹1,500 रुपए तनख्वाह मिलती है. BLO ने कहा कि ₹500 बहुत कम हैं, क्योंकि मोबाइल रिचार्ज, इंटरनेट और बार-बार वोटरों को कॉल करने में उनका इससे ज्यादा खर्च हो जाता है, और उन्हें अपनी जेब से पैसा लगाना पड़ा है. उन्होंने सरकार से तनख्वाह और इंसेंटिव बढ़ाने की अपील की है.














