विधान परिषद टिकट बंटवारे के बाद सपा गठबंधन में नाराजगी के सुर, महान दल ने किया अलग होने का ऐलान

राज्यसभा के चुनाव में तो ऐन वक्त पर सारी चीजें ठीक हो गईं लेकिन विधान परिषद के चुनाव में छोटे दलों की नाराजगी उभरकर सामने आने लगी है.

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अखिलेश यादव के सामने सपा गठबंधन को बरकरार रखने की कठिन चुनौती है

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने जिन छोटे-छोटे दलों को जोड़कर एक बड़ा गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था,उसे बरकरार रखने की 'अग्निपरीक्षा' अभी चल रही है.राज्यसभा के चुनाव में तो ऐन वक्त पर सारी चीजें ठीक हो गईं लेकिन विधान परिषद के चुनाव में छोटे दलों की नाराजगी उभरकर सामने आने लगी है. कुल 13 विधान परिषद की सीट पर 9 सीट बीजेपी के खाते में चली गईं जबकि 4 सीट सपा के खाते में आ सकती हैं. इन चार सीट में अपने दल के जातीय समीकरण के अलावा गठबंधन के पार्टियों के भी मंसूबों को साधने की बड़ी कवायद समाजवादी पार्टी को करनी पड़ रही है.फिलहाल इन 4 सीटों में अखिलेश ने जिन समीकरणों को ध्यान में रखा है उसमें दलित, ओबीसी और मुस्लिम बिरादरी है. इसमें स्वामी प्रसाद मौर्या, मुकुल यादव , शाहनवाज़ खान उर्फ शब्बू और जस्मिन अंसारी को टिकट दिया.

इन नामों के ऐलान होते ही सबसे पहले महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य ने गठबंधन से अलग होने की बात कही है. समाजवादी पार्टी ने विधानसभा के चुनाव में महान दल को फर्रुखाबाद की सदन और बांदा यूपी बिल्सी सीट पर अपने चुनाव चिन्ह से चुनाव लड़ाया था लेकिन दोनों ही जगह उनके प्रत्याशी हार गए. लिहाजा मौर्य एमएलसी के जरिए सदन में जाना चाहते थे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिला तो अब वह अखिलेश पर अवसरवाद का आरोप लगा रहे हैं. गठबंधन के दूसरे नेता सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओमप्रकाश राजभर हैं. राजभर अपने बेटे को विधान परिषद के जरिए सदन में भेजना चाहते थे. उनके बेटे अरविंद राजभर बनारस में अनिल राजभर से चुनाव हार गए थे उन्हें बड़ी उम्मीद थी कि समाजवादी पार्टी की इस जीत में राजभरों का बड़ा योगदान है लिहाजा समाजवादी पार्टी उनके बेटे को विधान परिषद का टिकट जरूर देगी लेकिन जब नहीं मिला तो अब दर्द छलक कर बाहर आ रहा है. वह कह रहे हैं कि हम बहुत छोटी पार्टी हैं, लिहाजा हमारा ख्याल नहीं रखा गया.आगे यह भी कह रहे हैं, "मांगो उसी से जो दे खुशी से, नहीं तो कहो न किसी से." हालांकि ओमप्रकाश राजभर गठबंधन से अलग होने की बात अभी नहीं कर रहे हैं लेकिन उन्‍होंने अपनी नाराजगी व्यक्त कर दी है.

अब अगर अखिलेश यादव ने इस नाराजगी के बीच जिन चार लोगों को चुना है उसके पीछे की गणित क्या है? इसे अगर समझें तो इन 4 लोगों में एक उम्मीदवार स्वामी प्रसाद मौर्य है जो विधानसभा से पहले ही योगी सरकार में मंत्री पद छोड़कर सपा के साथ आए थे और अखिलेश को बड़ी ताकत दी थी. वह चुनाव नहीं जीत पाए थे, लिहाजा उन्हें विधान परिषद में भेजने का दबाव अखिलेश पर था. दूसरे उम्मीदवार मुकुल यादव हैं. वे गरहन सीट से चार बार विधायक रहे सोबरन सिंह यादव के बेटे हैं उनको सियासत में एंट्री दिलाकर यादव बिरादरी को एक संदेश देने की कोशिश की है. तीसरे उम्मीदवार शाहनवाज खान उर्फ शब्बू हैं, वे आजम खान के नजदीकी सरफराज खान के बेटे हैं.अखिलेश यह टिकट देकर आजम खान से अपने नजदीकी बताने की कोशिश में हैं. चौथे उम्मीदवार जास्मीन अंसारी हैं इसके जरिए मुसलमानों के अंसारी बिरादरी के वोटो को अपनी तरफ साधने की कोशिश हो सकती है.  विधान परिषद के इस टिकट बंटवारे के बाद ओमप्रकाश राजभर की नाराजगी 2024 के लोकसभा के चुनाव में क्या रंग दिखाएगी और आने वाले समय में इन छोटे-छोटे दलों का नया समीकरण क्या बनेगा, यह देखने वाली बात होगी लेकिन फिलहाल तो महागठबंधन के इस कुनबे में नाराजगी शुरू हो गई है.

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