बेटा अब्दुल्ला जेल से छूटा, अब अखिलेश को लेकर आज़म खान कर सकते हैं ये बड़ा फैसला

आज़म खान तो जेल में हैं पर उनके समर्थकों ने अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. आरोप है कि रामपुर के मामले में सब ख़ामोश रहे, लेकिन संभल के केस में संसद से लेकर सड़क तक विरोध हुआ. आज़म को लगता है कि संभल से सांसद जिया उर रहमान बर्क अब अखिलेश की पसंद बन गए हैं.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins
आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला
लखनऊ:

आज़म खान के बेटे अब्दुल्ला सत्रह महीनों बाद जेल से छूटे हैं. उनके पिता भी जेल में बंद हैं. दोनों चुनाव भी नहीं लड़ सकते हैं. आज़म और उनके परिवार को लगता है अखिलेश यादव ने उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया. खबर है कि चंद्रशेखर रावण के साथ मिलकर वे कोई अलग फ्रंट बना सकते हैं. सूत्र बताते हैं कि ऐसा होने पर आज़म और उनके परिवार को क़ानूनी राहत भी मिल सकती है. चंद्रशेखर रावण और आज़म अगर साथ आते हैं तो पश्चिमी यूपी का राजनैतिक समीकरण बदल सकता है. यूपी में साल 2027 में विधानसभा के चुनाव हैं.

अब्दुल्ला आज़म मंगलवार सुबह 11 बजकर 40 मिनट पर जेल से छूटे, लेकिन समर्थकों की भीड़ सवेरे से ही हरदोई जेल के गेट के बाहर जुट गई थी. नारे लग रहे थे जेल के ताले टूट गए, अब्दुल्ला भाई छूट गए. पायजामा कुर्ता और ब्लैक सदरी में अब्दुल्ला जेल के गेट से बाहर निकले. समर्थकों ने उन्हें घेर लिया. मीडिया से उन्होंने कोई बात नहीं की. उनके साथ आज़म के करीबी नेता युसूफ मलिक भी साथ थे.

अब्दुल्ला आज़म सत्रह महीने से जेल में थे. उन्हें रामपुर ले जाने के लिए समाजवादी पार्टी की साांसद रूचिवीरा भी पहुंची थी. इसी महीने 19 साल पुराने एक केस में आज़म ख़ान के खिलाफ SIT जांच शुरू हो गई है. मामला रंगदारी मांगने का है, लेकिन उनके बेटे अब्दुल्ला को हाल में ज़मानत मिल गई है. ये दोनों घटना संयोग नहीं एक प्रयोग है. वो भी राजनैतिक. सूत्र बताते हैं कि समाजवादी पार्टी से अलग आज़म खान का परिवार राजनैतिक गुना गणित में जुटा है.

Advertisement

कहते हैं कि ताली दोनों हाथ से बजती है. तो खबर है कि आज़म और उनके परिवार के लिए समय अच्छा हो सकता है. शायद कोर्ट कचहरी के चक्कर कम लगाने पड़े. परिवार में इस पर विचार चल रहा है. लंबे समय से आज़म की राजनीति और उनका अली ज़ौहर यूनिवर्सिटी संकट में है. यूपी में योगी सरकार के आते ही आज़म और उनके परिवार पर तो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. बकरी चोरी और डकैती से लेकर ज़मीन क़ब्ज़े करने तक के मुकदमे चल रहे हैं.

Advertisement

एक दौर मैं यूपी की राजनीति में आज़म खान की तूती बोलती थी. मुख्यमंत्री मुलायम हों या फिर अखिलेश यादव, आज़म खान का रुतबा मिनी सीएम वाला ही रहा, लेकिन आज न तो वे चुनाव लड़ सकते हैं न ही उनके बड़े बेटे अब्दुल्ला आज़म. कोर्ट ने दोनों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी है. एक जमाने में दोनों पिता पुत्र विधायक थे और आज़म की पत्नी तंजीन फ़ातिमा राज्य सभा की सांसद थीं.  एक समय में तीनों जेल में बंद थे. समाजवादी पार्टी की राजनीति में भी आज़म और उनका परिवार अब उतना ताकतवर नहीं रहा. उनके धुर विरोधी मोहिबुल्लाह नदवी रामपुर के सांसद हैं. आशु मलिक, कमाल अख़्तर से लेकर जिया उर रहमान बर्क अब पार्टी में प्रभावशाली मुस्लिम नेता बन गए है. अखिलेश यादव के आस पास यही नेता अब नज़र आते हैं.

Advertisement

आज़म खान तो जेल में हैं पर उनके समर्थकों ने अखिलेश यादव के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. बात पिछले साल के 10 दिसंबर की है. रामपुर से समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष अजय सागर के लेटरहेड पर आज़म का संदेश जारी हुआ. इंडिया गठबंधन के खिलाफ झंडा बुलंद हुआ. कहा गया कि रामपुर के मामले में सब ख़ामोश रहे, लेकिन संभल के केस में संसद से लेकर सड़क तक विरोध हुआ. आज़म खान को लगता है कि संभल से सांसद जिया उर रहमान बर्क अब अखिलेश की पसंद बन गए हैं.

Advertisement

समाजवादी पार्टी के सीनियर लीडर आज़म खान अब अपनी लड़ाई खुद लड़ना चाहते हैं. आज़ाद समाज पार्टी के सांसद चंद्रशेखर रावण उनके इस मिशन में उनके साथ हो सकते है. रावण वैसे भी अब्दुल्ला को अपना भाई और आज़म को अपना अभिभावक बताते हैं. बीते दिनों उन्होंने जेल में पिता पुत्र से मुलाक़ात की थी. आज़म और चंद्रशेखर मिलकर एक अलग मोर्चा बना सकते हैं. दलित और मुस्लिम वोटरों के दम पर ये फ़्रंट पश्चिमी यूपी में अपना दम दिखा सकता है.

अखिलेश यादव और चंद्रशेखर रावण की दुश्मनी जगज़ाहिर है. फ़ैसला अब आज़म को करना है. सूत्र बताते हैं कि परिवार के लोग तो तैयार हैं पर आज़म ने अभी मन नहीं बनाया है. अगर आज़म और चंद्रशेखर साथ हुए तो 2027 में यूपी का चुनाव दिलचस्प हो सकता है. आज़म को लेकर समाजवादी पार्टी नेताओं का एक गुट ये मानता है कि आज़म के चलते जितने वोट मिलते नहीं उतने हिंदू वोट कट जाते हैं. बीते लोकसभा चुनाव में आज़म जेल में थे लेकिन समाजवादी पार्टी को मुसलमानों का एकमुश्त वोट मिला. लेकिन आज़म का समाजवादी पार्टी से बाहर रहना भी नुक़सान कर सकता है. साल 2009 का लोकसभा चुनाव इसका गवाह है. कहते हैं कि इतिहास खुद को दुहराता है.

Featured Video Of The Day
Russia Ukraine War | यूक्रेन के बहाने: यूरोप और US आमने-सामने? | Zelensky | NDTV Duniya