जाति बताने वाले सरकारी दस्तावेज और निशान मिटायें... हाई कोर्ट ने क्यों की ऐसी टिप्पणी, पढ़ें 

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस विनोद दिवाकर की सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता प्रवीण छेत्री की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि जातिगत महिमामंडन 'राष्ट्र-विरोधी' है.

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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जाति व्यवस्था को लेकर सख़्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि समाज में जातिगत महिमामंडन बंद किया जाना चाहिए. कोर्ट ने सरकारी दस्तावेज़ों, गाड़ियों और सार्वजनिक जगहों से जातियों का नाम, प्रतीक और निशान हटाने को कहा. कोर्ट का कहना है कि अगर देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाना है तो जाति व्यवस्था को ख़त्म करना होगा. 

यूपी के इटावा से जुड़े कथित शराब तस्करी से संबंधित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए अपने महत्वपूर्ण फैसले में तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने समाज में जातिगत महिमामंडन की प्रवृत्ति पर कड़ी आपत्ति जताते हुए यूपी सरकार को एफआईआर, पुलिस दस्तावेजों, सार्वजनिक अभिलेखों, मोटर वाहनों और सार्वजनिक साइनबोर्ड से जातिगत संदर्भ हटाने के व्यापक निर्देश जारी किए है. 

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस विनोद दिवाकर की सिंगल बेंच ने याचिकाकर्ता प्रवीण छेत्री की याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि जातिगत महिमामंडन 'राष्ट्र-विरोधी' है. और वंश के बजाए संविधान के प्रति श्रद्धा ही देशभक्ति का सर्वोच्च रूप और राष्ट्र सेवा की सच्ची अभिव्यक्ति है. जहां तक जाति आधारित भेदभाव का सवाल है, नीति और नियम निर्माताओं को सार्वजनिक वाहनों में जाति के प्रतीकों और नारों पर अंकुश लगाने, सोशल मीडिया पर जातिगत महिमामंडन वाली सामग्री को नियंत्रित करने और विशिष्ट जाति आधारित संस्थानों के बजाए अंतर-जातीय संस्थानों और सामुदायिक केंद्रों को बढ़ावा देने पर विचार करना चाहिए. 

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