हवाई यात्रा इतनी महंगी क्यों है और आने वाले समय में ऐसा ही क्यों रहेगा, जानें यहां

यूरोप के सबसे ज्यादा हवाई यात्रियों को देखने वाली कंपनी रियानायर होल्डिंग्स के सीईओ माइकल ओ'लियरी ने कहा कि ग्राहकों के लिए बुरी खबर यह है कि अभी कुछ सालों तक इस प्रकार का बढ़ा हुआ किराया बना ही रहेगा. 

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हवाई किराया अभी भी काफी महंगा है.
नई दिल्ली:

कोरोना महामारी का समय समाप्त हो चुका है, दो देशों के बीच आवाजाही फिर आसान हो चुकी है और ऐसे में एयरलाइंस को मुनाफे की उम्मीद है क्योंकि इस बिजनेस का दौर एक बार फिर आ चुका है. ऐसा है फिर भी किराया इतना महंगा क्यों है?

एक कारण तो यह है कि हवाई जहाजों की कमी है. एयरलाइंस ने कोरोना काल में अपने काफी हवाई जहाजों को ग्राउंड कर दिया था क्योंकि उस समय यात्रा करने वालों की संख्या में तेज गिरावट आई थी. अब वे उन जहाजों को तेजी से वापस नहीं ला सकते हैं. किसी बड़े जेट प्लेन को जिसे पार्क कर दिया गया हो, उसे वापस से इस्तेमाल करने लायक बनाने के लिए करीब 100 कामकाजी घंटों की जरूरत पड़ती है.

बीक्यू प्राइम की खबर के अनुसार, दूसरा कारण : अब कुछ ग्राहक टिकटों के लिए ज्यादा पैसा चुकाने को तैयार हैं, वो भी तब जब उन्हें टिकट देने से इनकार कर दिया गया हो.  बुकिंग.कॉम के एक सर्वे के अनुसार बहुत सारे लोग अपनी यात्रा योजना को लेकर ज्यादा संजीदा हैं. यह सर्वे 25 हजार से ज्यादा लोगों पर किया गया था. इन लोगों का मानना है कि वे जो मौके कोरोना काल में खो चुके हैं उसे वे पूरा करना चाहते हैं. 

ऑनलाइन ट्रेवल कंपनी के वरिष्ठ निदेशक मार्कोस गुरेरो ने कहा कि ऐसे में पिछले भुगतान किए गए किराए से ये यात्रा भले ही कुछ महंगी क्यों  न हो, काफी लोग नई यात्रा में वैल्यू देख रहे हैं. 

यूरोप के सबसे ज्यादा हवाई यात्रियों को देखने वाली कंपनी रियानायर होल्डिंग्स के सीईओ माइकल ओ'लियरी ने कहा कि ग्राहकों के लिए बुरी खबर यह है कि अभी कुछ सालों तक इस प्रकार का बढ़ा हुआ किराया बना ही रहेगा. 

स्टाफ की कमी
कोरोना के कारण एयरलाइंस को करीब 200 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ और 10 मिलियन से ज्यादा लोगों की नौकरी चली गई. अब जब ट्रैवल इंडस्ट्री रिकवरी कर रही है तब एविएशन इंडस्ट्री स्टाफ को री-रिक्रूट करने में मशक्कत कर रही है. कई पुराने जानकार कर्मचारियों ने नए करियर को ढूंढ लिया जिसमें नौकरी की स्टेबिलिटी हो.

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स्टाफ की कमी के चलते एयरपोर्ट्स पर चेक इन, इम्मीग्रेशन काउंटर्स और सामान को ढोने में दिक्कतें हो रही हैं. ऐसे में स्टाफ को दोबारा रखने और नए स्टाफ को लाने के लिए एयरलाइंस कंपनियों को ज्यादा पैसे में लोगों को रखना पड़ रहा है. ऐसे में एयरलाइंस कंपनियों को अपने बढ़े खर्चों को निकालने के लिए ज्यादा किराया लेना पड़ रहा है. 

तेल की ऊंची कीमतें
पिछले  साल तेल की कीमतों में कुछ कमी आई है, लेकिन क्रूड आयल अभी भी जनवरी 2019 की तुलना में 50 फीसदी तक अधिक महंगा है. ऐसे में एयरलाइंस कंपनियों के लिए यह बड़ी चिंता है क्योंकि ईंधन के दाम पर उनका काफी खर्चा होता है. सस्ती उड़ान कराने वाली कंपनियां आमतौर पर ईंधन को हेज नहीं करती है. ऐसे में रूस-यूक्रेन जैसी घटनाओं की वजह से तेल की कीमतों में अचानक आई तेजी से वह प्रभावित हुए बिना नहीं बच पाती हैं. 

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दुनिया में कार्बन उत्सर्जन के मामले में एयरलाइंस 2 प्रतिशत से ज्यादा योगदान करती हैं. लेकिन अन्य बिजनेसेस की तुलना में कार्बन उत्सर्जन कम करने को लेकर प्रतिबद्धता में काफी पीछे हैं. इसके पीछे भी कारण साफ है कि टिकाऊ ईंधन पारंपरिक जेट फ्यूल की तुलना में 5 गुणा ज्यादा महंगा है. 

इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अनुसार इस इंडस्ट्री को 2050 तक कार्बन  न्यूट्रल होने के लिए 2 ट्रिलियन डॉलर चुकाने होंगे. एयरलाइंस को इन सब बातों के लिए टिकटों के दामों को बढ़ाना पड़ रहा है.  इसके अलावा नई तकनीक जिसमें हाईड्रोजन ईंधन या फिर इलेक्ट्रिक विमान जिन पर रिसर्ज जारी है और जिनको लाने की बात हो रही है वे और ज्यादा महंगे होंगे. 

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एयरक्राफ्ट की कमी
कोरोना महामारी के दौरान करीब 16000 हवाई जहाज को ग्राउंडेड कर दिया गया था. यह दुनियाभर के कमर्शियल फ्लाइट का दो तिहाई था. इन सबको वापस काम पर लाना काफी बड़ा काम है. इनमें से काफी को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के मरुस्थल पर रखा गया था. इन्हें भी काम पर वापस लाने में काफी मेहनत करनी पड़ेगी.

वहीं, एयरक्राफ्ट बनाने वालीं कंपनियां उत्पादन में पिछड़ रही हैं क्योंकि लेबर शॉर्टेज से उत्पादन रुक जा रहा है. रूस पर लगे प्रतिबंधों की वजह से भी कुछ दिक्कतें बढ़ गई हैं. 

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रियानायर का मानना है कि गर्मी में हवाई यात्रा और महंगी होगी. हो सकता है कि यह 15 प्रतिशत तक महंगी हो जाए. 

चीन से कम रिटर्न
महामारी से पहले चीन जो कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था रहा है, जहां से 280 बिलियन डॉलर का वार्षिक पर्यटन का रेवेन्यू था, वहां पर अभी भी सुधार के लिए काफी काम चल रहा है. एक सर्वे में पता चला है कि 2023 में 30 प्रतिशत से ज्यादा लोग अभी भी बाहर जाने से बच रहे हैं. 

एसोसिएशन ऑफ पैसिफिक एयरलाइंस ने कहा है कि चीन को अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा के मामले में प्री-पैंडेमिक स्तर पर जाने में अभी एक साल का समय लगेगा. यह अलग बात है कि चीन में आंतरिक हवाई यात्रा का परिदृश्य 2019 के समान हो चुका है लेकिन चीन की कुछ नीतियों के चलते या तो वो कुछ अलग-थलग पड़ गया या फिर दुनिया भी वहां से दूर हो गई है.

प्वाइंट्स की समस्या
हवाई यात्रा करने वालों ने एयरलाइंस के प्वाइंट एकत्र कर लिए हैं. क्रेडिट कार्ड आदि का इस्तेमाल कर ये प्वाइंट इकट्ठा किए हैं. सीटों के अभाव में वे इन प्वाइंट्स का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं. एयरलाइंस ने इस तरह की प्वाइंट्स की सीटों की संख्या कम कर दी है.ऐसे में भी यह सब हवाई यात्रा पर असर डाल रहा है. 

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