देश का बजट 2023-24 कुछ ही दिनों में लोकसभा में पेश होगा. सभी लोगों को बजट का इंतजार होता है. खासतौर पर वे जो बजट की घोषणाओं के साथ प्रभावित होते हैं. जी हां, कुछ लोग अपने काम को करने में मस्त रहते हैं और उन्हें बजट की घोषणाओं से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन देश की बड़ी आबादी बजट की हर साल होने वाली घोषणओं से प्रभावित होते हैं और बजट पेश होने वाले दिन यानि एक फरवरी को पूरी तरह से नजर बनाए रखते हैं. सबसे ज्यादा जो बात लोगों को ध्यान में रहती है वह है आयकर सीमा में क्या कोई बदलाव हुआ है. कई लोगों के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के जानकार बिजनेसमैन उद्योगसंगठन सभी सरकार से आयकर छूट सीमा को बढ़ाने की अपेक्षा कर रहे हैं. अब समय इनवेस्टमेंट का चल रहा है, लोग अलग-अलग माध्यमों के जरिए अलग अलग स्कीम में निवेश कर रहे हैं. ऐसे में निवेश से प्राप्त होते रिटर्न पर भी टैक्स लगता है और ऐसे में लोग अपनी बचत पर भी टैक्स देखकर परेशान होते हैं और आशा करते हैं कि सरकार इस पर टैक्स की छूट दे या कम करें. इस प्रकार के निवेश पर लगने वाले टैक्स को आपकी आय से अलग कैपिटल गेन माना जाता है. इसी अतिरिक्त मुनाफे पर टैक्स को कैपिटल गेन टेक्स कहते हैं.
गौर करने की बात है कि इनकम टैक्स रिटर्न भरते समय ध्यान रखना पड़ता है कि, अगर किसी को समान वित्त वर्ष में किसी तरह का कैपिटल गेन्स हुआ है तो उस पर भी टैक्स देना होता है. लेकिन अधिकतर लोगों को इसकी जानकारी नहीं होती या वे भूल जाते हैं. ऐेसे लोग कैपिटल गेन को ITR-1 में नहीं भरते.
कैपिटल गेन टैक्स (What is Capital Gains Tax) क्या है?
आसान भाषा में समझाने के लिए बता दें कि कैपिटल गेन्स टैक्स इस प्रकार टैक्स होता है जो किसी कैपिटल एसेट (पूंजी संपत्ति) की बिक्री से होने वाले फायदे पर लिया जाता है. आम तौर पर, ऐसी संपत्ति (Capital asset) की बिक्री कीमत, उनकी खरीद कीमत से ज्यादा होने पर ही बेचा जाता है और इससे होने वाले लाभ को कैपिटल गेन (Capital Gain) कहते हैं. इस प्रकार के Capital Gain (कैपिटल गेन) पर जो टैक्स लगता है, उसे ही Capital Gains Tax कहते हैं. हिंदी में इसे पूंजीगत लाभ कर कहते हैं.
अमूमन एक आदमी जमीन, प्लॉट, गोल्ड, शेयर, बांड्स, पेंटिंग्स, हेरिटेज कार आदि खरीदता है. यह सब अपने इस्तेमाल के लिए खरीदी जाती है या निवेश के लिए खरीदी जाती है. इन्हें Capital asset कहा जाता है. चूंकि यह निवेश का प्रकार है तो यह तय है कि निवेश की एक समय सीमा होगी. यह वह कैपिटल की तरह पड़ा ही रहेगा. तो इस समय सीमा का भी वर्गीकरण किया गया है. उदाहरण के लिए शेयर बाजार के लिहाज से कैपिटल गेन्स टैक्स भी दो समय सीमा में बांधा गया है. एक, 1 वर्ष से कम अवधि का. इस टैक्स को short-term Capital Gains Tax कहते हैं. यानि, किसी पूंजी संपत्ति (capital asset) को एक साल के भीतर बेचने पर जो लाभ होता है, उस पर लगने वाले टैक्स को short-term Capital Gains Tax कहते हैं. वहीं, एक साल से अधिक अवधि के बाद पूंजी संपत्ति (capital asset ) बेचने पर जो लाभ होता है, उस पर लगने वाले टैक्स को long-term Capital Gains Tax कहते हैं. बता दें कि किसी पूंजी के लिए long Term 3 साल का माना जाता है तो किसी के लिए 2 साल का और कहीं कहीं तो यह 1 साल भी है.
एक बात समझने की यह है कि हर बिकने वाली वस्तु को कैपिटल एसेट नहीं कहा जा सकता है. बिजनेस सेक्टर में capital asset, ऐसी संपत्ति को कहा जाता है, जोकि उस बिजनेस में प्रयोग के लिए खरीदी गई है. उदाहरण के लिए समझें कि अगर कोई कंपनी कामकाज को लिए कंप्यूटर या अन्य सामान खरीदती है तो उसके लिए वह कंप्यूटर capital asset है. लेकिन, ऐसे ही कोई अन्य कंपनी कंप्यूटर को बेचने के लिए खरीदती है तो उसके लिए यह एक सामान inventory है. इस जगह यह बिजनेस है और यहां की आय बिजनेस से आय है वहीं ऊपर की गणना में यह कैपिटल एसेट है.
शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स प्रॉपर्टी पर
अगर कोई Property आप 3 साल से कम अवधि तक रखकर बेच देते हैं तो उससे होने वाला मुनाफा Short term Capital Gain में गिना जाता है. इस पर लगने वाला टैक्स Short term Capital Gains Tax कहा जाता है. Financial Year 2017-18 से अचल संपत्तियों के 2 साल के भीतर हुए सौदों को Short term की सीमा में कर दिया गया . Shares के मामले में 1 साल के भीतर बेचने पर उससे होने वाला फायदा Short term Capital Gain माना जाएगा. इस पर लगने वाला टैक्स Short term Capital Gains Tax कहा जाएगा.
शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स की दर
बता दें कि Short Term Capital Gain पर टैक्स के लिए सरकार कोई अलग से दर घोषित नहीं करती है. इसे अन्य आय की तरह कुल आय में जोड़ा जाता है. फिर कुल आय पर जितना Tax हुआ वो भी Tax Slab के अनुसार वो भरना होता है. लेकिन अगर equity बाजार में शेयर ले रखे हैं तब एक साल के भीतर शेयर बाजार में शेयरों की खऱीद फरोख्त से होने वाली आय पर short term Capital gains tax 15 प्रतिशत की दर से देना होता है.
वहीं, अगर कोई Property आप कम से कम 3 साल तक रखकर बेचते हैं तो उससे होने वाला मुनाफा Long Term Capital Gain में गिना जाता है. इस पर लगने वाला टैक्स Long Term Capital Gain Tax है. अचल संपत्तियों जैसे जमीन, घर आदि के मामले में Long Term Capital Gain की अवधि सरकार ने वित्तीय वर्ष 2017-18 से 2 साल कर दी है. वहीं, चल संपत्तियों से जेवर, बॉन्ड, डेट म्यूचुअल फंड आदि के मामले में यह 3 साल ही है.
आम तौर पर long-term capital gains पर 20 प्रतिशत की दर से टैक्स देना होता है. Finance Act, 2016 में संशोधन के मुताबिक खास मामलों में यह 10 प्रतिशत भी हो सकता है. कैपिटल गेन टैक्स कितना और कैसे लगता है इस पर हम अगले लेख में विस्तार से चर्चा करेंगे.
यहां यह बता दें कि फिलहाल किसी भी प्रकार के टैक्स गणना के लिए वित्तीय सलाहकार से बात जरूर कर लें.